अंधेरों पर हँसता हूँ!
अंधेरे सारी रात
बेसुरे गीत गाते
सूरज की आहट से
कौनों में छुप जातेे
सूरज का ऊगना ही,
याद रखा करता हूँ
ऊधमी अंधेरों पर,
मैं अक्सर हँसा करता हूँ
ये शैतान अंधेरे क्यूँ
बाज नहीं आते
जुगनूओं के सामने तक
जो ठहर नहीं पाते
सूरज के ऊगने को
रहते हैं झुठलाते !
-सत्यार्चन
4 thoughts on “अंधेरों पर हँसता हूँ!”
Bahut Sundar…
धन्यवाद् ….
धन्यवाद् आपका!
(जेटपेक ने डांटकर बताया कि मेरी ओर से उत्तर देना शेष था…!!!)