सर दर्द!
मेरा सर दर्द से फटा जा रहा था—
मैंने रुमाल उठाकर अपने सर पर बाँध लिया! थोड़ी देर को आराम मिला मगर दर्द फिर से सताने लगा ! मैंने एक रस्सी उठाई और रुमाल के ऊपर से ही बाँध ली!
वो देख रहे थे दूर से ,
बड़े ध्यान से!
कौन ?
मेरे अपने—
यानी मेरे सबसे बड़े हितैषी!
पत्नी ने चिल्लाते हुए टोका “ये क्या कर रहे हो…?”
मैंने कहा “सर दुख रहा है, तो बाँध लिया ….”
इसी बीच कहा सुनी सुनकर मेरे छोटे बड़े भाई भी आ गये थे और चुपचाप तमशबीन बने खड़े रहे.
पत्नि- “मगर ये रस्सी क्यों बाँधी है ? बहुत खराब लग रहा है देखने में इसे खोल दो”
मैं – “यार रुमाल बाँधने से थोड़ा आराम मिला था तो जोर से रस्सी से बाँध लिया अब ज्यादा आराम है…”
“वो तो ठीक है मगर ये कौनसा तरीका हुआ आराम पाने का …. भाभी सही कह रही है … रस्सी हटा दो… बहुत खराब लग रही है” बडे़ भया बोले.
मुझे मानना पड़ा…. मंने रस्सी हटा दी.
थोड़ी ही देर में दर्द फिर बढ़ने लगा तो मैं अपने हाथ से सर में धीरे धीरे मुक्के मारकर मसाज करने लगा … फिर थोड़ा आराम मिला… पत्नि ने फिर देखा फिर से टोका ….
“अब ये क्या कर रहे हो ? … भैया जी को बोलती हूँ…. उनकी बाइक पर बैठकर डाक्टर के पास जाकर दवाई ले आओ…. पागलपन मत करो !”
उसने भैया को आवाज लगाई.
वो आ गये और मुझे जाना पड़ा ….
अस्पताल पहुँचते-पहुँचते दर्द खत्म सा था…. फिर भी एहतियातन डाक्टर को दिखाया… ई सी जी, ई ई जी, एम आर आई वगैरह कुछ टेस्ट कराये गये …. और आगे कभी दर्द होने पर तुरंत अस्पताल आने की हिदायत लेकर हम घर को वापस आ गये .
हमने इस सबमें, एहतियातन 17000/- रुपये खर्च कर दिये थे !
3-4 साल हो गये इस बात को… दोबारा सर दर्द हुआ ही नहीं ….
हे भगवान …. हो भी नहीं !
वो पिछला वाला डाक्टर तीनेक साल पहले ही सर दर्द से मर चुका है….
अगर अब सर दर्द हुआ तो ….
नया अस्पताल, नयी जाँचें, नया तरीका, नया खर्च ….
शायद एकाध महीने भर्ती ही रहना पड़ जाये….
…. एहतियातन …. घरद्वार ही बेचना पड़ जाये !
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