मुख्य पाप 3

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कर्मफल सुनिश्चित हैं!

ना कि केवल पापों के फल!

3 तरह के मुख्य पाप वर्णित हैं…

1- अन्य का धन हड़पना, 2- परस्त्री से संसर्ग और 3- अनुपयुक्त हिंसा!

1- पराया धन हड़पना-

दूसरे का धन पाने का हर एक प्रयास अनुचित नहीं है…

संसार का प्रत्येक मनुष्य किसी ना किसी प्रकार से अन्य मनुष्य की सेवा / सुविधा/ हित साधन में अवश्य ही रत होता है… और सबके पास धनागम का यही एकमात्र मार्ग है…! किन्तु छल या बल के प्रयोग से अन्य की धन संपदा पाने का प्रयास करना या पाना निश्चय ही अधर्म है! पाप है!

2- परस्त्री से संबंध-


स्त्री और पुरुष यथार्थ हैं… उस परम सत्ता की इच्छानुसार निर्मित उसीकी रचना हैं…!
परस्त्री और परपुरूष संकल्पना मात्र कलयुगी ब्रम्हचर्य व्रत की व्यवस्थाएं हैं…! परस्त्री-परपुरुष सतयुगीन देवों, ऋषियों, महर्षियों के पौराणिक काल में किस स्थिति में थे वह भी पौराणिक कथाओं के सूक्ष्म विश्लेषण से स्पष्ट है…! आधे से अधिक प्रतिष्ठित ऋषि एक से अधिक पत्नियों वाले तथा आश्रम में निवासरत अन्य स्त्रियों के बच्चों के पिता थे..! वेदव्यास जी पांडु व धृतराष्ट्र के नियोग (अर्थात मात्र संतानोत्पत्ति के उद्देश्य से धर्मार्थ, उस स्त्री के प्रति अनुराग से रहित हो संसर्गरत होना!) द्वारा उत्पत्तिकारक पिता थे!
श्रीकृष्ण की अनुरागी गोपियों के लिये श्रीकृष्ण परपुरुष नहीं थे क्या? या श्रीकृष्ण के लिये ही समस्त गोपियाँ परस्त्री नहीं?
फिर क्या सही और क्या गलत?
विवाह?
अयोग्य, अक्षम या अस्वीकार्य से विवाह तो शून्य है!

और फिर यदि गंधर्व विवाह (स्त्री व पुरुष का सामयिक अथवा स्थाई एकदूसरे के प्रति समर्पित हो सम्पूर्ण समर्पण … या वरण … या सहमति पूर्ण संसर्ग!) उचित है तो स्वैच्छिक समर्पित स्त्री या आमंत्रित किया गया (या आमंत्रित करने वाले) स्त्री या पुरुष का रमण अनुचित क्यों है या क्यों होना चाहिए?

तो फिर व्यभिचार?

समर्पित, सक्षम व आपसी स्वीकार्य जीवनसाथी / (जीवन संगिनी) के उपलब्ध होते हुए भी… अन्य स्त्री (या पुरुष) की इच्छा करना, चेष्टापूर्वक पाने का प्रयास करना और पाकर भोग करना तीनों ही व्यभिचार हैं…!
किंतु पहली शर्त समर्पित, सक्षम व आपसी स्वीकार्य संगी/ संगिनी की उपलब्धता आवश्यक है..!

3- अनुपयुक्त हिंसा-

अहिंसा!
जीवन का महत्वपूर्ण कारक है अहिंसा!

अर्थात अपरिहार्य होने पर ही उचित के ऊपर सीमित मात्रा में सीमित हिंसा ही स्वीकार्य है!

अच्छा या बुरा जैसा लगा बतायें ... अच्छाई को प्रोत्साहन मिलेगा ... बुराई दूर की जा सकेगी...

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