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महामारी का टीका या टीके की महामारी?

महामारी का टीका या टीके की महामारी?

राजनैतिक प्रतिस्पर्धा में प्रतिद्वंद्वी की साख के पराभव का हर संभव प्रयास सभी पक्षों के लिए उचित है… किन्तु किस परिस्थिति में और  स्तर तक यह अवश्य विचारणीय होना चाहिए…!
वेक्सीन की शुद्वता पर  तो बहुत वहस हो चुकी … उपयोगिता या उपयोग के तरीक़े पर क्या निष्कर्ष निकले सबके सामने है… !
भारत की ही तरह… भारत के ही तरीक़े से अमेरिका ने भी वेक्सीनेशन मूवमेंट चलाया.. और दुनियाँ के ये दोनों बड़े देश … एक जैसी दुर्गति का उदाहरण बन गये… समूचा संसार साक्षी है … भारत के 9 पड़ौसियों में से कोई भी उतनी दयनीय दशा में नहीं जितना भारत हो गया !
क्यों ?
इसका सटीक उत्तर अब सार्वजनिक पहुंच से दूर कर दिया गया है..!
एक तरीका दिखता है कि किसी कॉलसेंटर पर फोन कर पूछ लिया जाये तो शायद कारण स्पष्ट हो जायें…
प्रश्न है कि वेक्सीन लगवाने के बाद कोई विशेष सावधानियां रखने की जरूरत तो नहीं? यदि हैं तो क्या क्या?
मेरी स्मृति में अंकित है कि “वेक्सीन लगवाने के बाद आपको संक्रमित की तरह स्वयंं को 2 सप्ताह तक एकांगी रखना चाहिए था… जो पर्याप्त प्रचारित ना हो सका… सूचित ना किया जा सका …
परिणामस्वरूप वेक्सीनेटेड सीनियर सिटीजन के परिजनों से शुरु होकर संक्रमण विस्फोटक बनता गया और आज भी जारी है… इसीलिये आगे छोटे बच्चों की भी बारी है…!
अब अगर पक्षकार बोले तो वो निष्कासित हो जायेगा और विपक्ष बोले तो राष्ट्रद्रोही…!
ये किस तरह की राजनीतिक समझ का द्योतक है?

राम की… कृष्ण की… या रावण की… किस की बनाई रीत से प्रीत लगाये बैठी है यह सरकार?

traffictail
Author: traffictail

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