पति-पत्नि प्रसंगम् … 1
भारतीय संस्कृति में जीवनसाथियों के प्रत्येक जोड़े को सर्वमान्य युगल शिव और शक्ति के (समयानुकूल परिवर्धित) रूपों की तरह ही माना जाता है..! शिव-शक्ति की ही तरह प्रत्येक युगल केबीच मतवैभिन्य का होना तो प्रकृति के अनुरूप बिल्कुल स्वाभाविक है.. कभी कभी ये मतवैभिन्य मतभेदों का कारण भी बन जाते हैं…

किन्तु यदि संबंधित युगल बौद्धिक, सभ्य या धार्मिक हैं तो ऐसे मतभेद उभरते ही नहीं.. और यदि उभरे भी तो बड़ी सरलता से सुलझ भी जाते हैं..! इन तीनों में से किसी एक भी गुण से संपन्न प्रत्येक शिवरूप; शक्तिरूप की और शक्तिरूपा; शिवरूप की प्रकृति प्रवृत्ति, परिस्थिति, संस्कृति,आचार-विचार व्यहवार, क्षमता तथा सीमितता सभी से सहज ही सहज ही परिचित रहते हैं.. तब कर्तव्यनिर्वहन के बीच मतवैभिन्य की स्थिति निर्मित होने पर.. जन्मे उत्साह या आक्रोश के तिरोहित होते ही … वे स्वयं को दूसरे के नजरिये से देखने में सफल हो जाते हैं.. और देखते ही 99% तक समाधान पा लेते हैं… ! . सामान्यतः समस्या बढ़ने की संभावना वहाँ होती जहाँ संबंधित पक्ष अशिक्षित या अधार्मिक या असभ्य हों! . – ‘सत्यार्चन’