उन्नति के शिखर..
जीवन यात्रा में आपके विचारों का घोड़ा ही आपके जीवन की सफलता का निर्धारक है .. यह जो विचारों का घोड़ा है.. बहुत सशक्त है.. इसकी लगाम भी आपके ही हाथ में है.. और दौड़ाना भी आपको ही है..
दिशाएं मुख्यतः 2 हैं.. एक सकारात्मक.. जो उन्नति के शिखर की ओर जाती है..!
और दूसरी नकारात्मक.. जो पतन की खाई की तरफ ले जायेगी..!
तीर की गति से सरपट दौड़ते घोड़े को भी घुड़सवार, लगाम के जरा से नियंत्रण से, मनचाही दिशा में, दौड़ाता चलता है.. वैसे ही विचारों के घोड़े हैं.. जिस पर हाथ में लगाम थामे हुए सवार हैं आप..
आप ही यह चुनते हैं कि घोड़ा किस ओर दौड़े… उसी दिशा में विचारों का घोड़ा दौड़ता भी है..
एक तरफ निराशा की खाई होती है तो दूसरी ओर साहसिक सफलता के शिखर…
हाँ यह जरूर है कि चाहे शिखर की ऊँचाई की ओर जाईये.. या खाई की ढलान पर.. घोड़े की गति वैसी नहीं रह पाती जैसी समतल में होती है…और सवार को भी घोड़े की पीठ पर बैठे रह पाना सरल नहीं रह पाता.. जैसा कि समतल में चलते हुए हुआ करता है..!
उन्नति के शिखर की ओर… या पतन की खाई तरफ.. दोनों ही यात्राएँ दूभर भी हैं.. खतरों से भरी हुई भी..!
सामान्य जन तो समतल में ‘चलते’ घोड़े के सवार की तरह लगभग ऊँघते हुए से जिन्दगी जी रहे होते हैं.. ये लोग अपने अश्व को दौड़ाने में लगने वाला छोटामोटा प्रयास भी नहीं करना चाहते..
लेकिन जो खास हैं वे अपने अश्व को निरंतर दौड़ाते रहने के आदी होते हैं.. उनमें एक जिद.. एक जुनून होता है.. !
किन्तु दिशा के चयन में एक भी भूल से वे शिखर के स्थान पर खाई की दिशा में चल पड़ते हैं.. स्वभावत: ऐसे लोग; गति को नियंत्रित कर धीमा भी नहीं करना चाहते.. और समय समय पर यात्रा की दिशा पर पुनर्विचार भी नहीं करते.. उनका दुर्घटना ग्रस्त हो जाना.. पथ भ्रमित हो जाना.. पथभ्रष्ट हो जाना अवश्यंभावी होता है..!
आशंका; असफलता के गर्त्त की ओर.. तथा आशा; उन्नति के शिखर की ओर ले जानी वाली दिशायें हैं..!
उचित दिशा का चयन कीजिएगा! समय समय पर पुनरावलोकन भी.. एक दिन मनचाही मंज़िल मिल ही जायेगी.. जरूर मिलेगी!
– ‘सुबुद्ध’