*#परमात्म चिन्तन (?)*
(एक अन्य सन्त से मेरी आज की चर्चा का सार…)
अपनी-अपनी प्रेरणा के अनुरूप अपनी-अपनी संकल्पना तक ही व्यक्ति परमात्म स्वरूप को आकार देता है… किन्तु जो तार्किकता की कसौटी पर जितना ग्राह्य हो वही स्वरूप मान्यता पाता है!
#परमपिता_परमेश्वर शब्द एवं भाव के जनक #पुण्यात्मा जीजस थे.. ! हर एक आत्मा परिष्कृत पुण्यात्मा में ही परिवर्तित हो अंततः परमात्म में ही जाकर स्थित होने वाली है… जिसे सनातन में मोक्ष कहा गया है! ऐसी ही परिष्कृत पुण्यात्मा जीजस थे , ऐसे ही #गौतम_बुद्ध, #महावीर_स्वामी, #श्रीराम, #श्रीकृष्ण, #सिर्डी_वाले_साँईं_बाबा, #महात्मा_गाँधी, #मोहम्मद_साहब, #गुरुनानक_देव_जी, #आदि_शंकराचार्य, #महर्षि_महेश_योगी, #रजनीश जी, #शिव_बाबा / ब्रम्हा_बाबा (परमादरणीय बाबा हरपाल सिंह जी), सभी #पोप, सभी #शंकराचार्य, #दयानंद_सरस्वती जी, #विवेकानंद जी, और भी सभी अप्रसिद्ध या प्रसिद्ध किन्तु सिद्ध स्त्री-पुरुष हैं.. सिद्ध को पूर्व में घटे हुए का यथार्थ दर्शन ही नहीं, भावी घटित का भी दृश्यमान जैसा सटीक अनुमान या प्रेरणा होने लगती है..
सिद्ध का दर्शन सामान्य जन के दर्शन से पृथक होता है.. !
सिद्ध व्यक्ति को पेड़ की जड़ों का भी (दृष्टव्य जैसा ही ) अनुमान होता है जो बहुत सटीक भी होता है..! सिद्ध का दर्शन ऐसा होता है जो सामान्य को चमत्कृत करता रहता है! सिद्ध को प्राप्त दिव्यशक्तियों से उन्हें वह दिखना प्रारम्भ हो जाता है (वैसी अनुभूतियां होनी शुरु हो जाती हैं) जिन तक सामान्य जन पहुँच ही नहीं सकते!
आत्मा और परमात्मा को भी तथा परमात्मा से आत्मा के संबंध को सिद्ध का चिंतन देख और समझ तो पाता है किंतु व्याख्यायित करना कठिन है. ज्ञान एक निजी अनुभूति है जिसका हर एक व्यक्ति में आरोपण, अंतरण या प्रक्षेपण संभव नहीं … केवल समकक्ष ही उस ज्ञान के संदेश के निकट तक पहुँच सकते हैं..!
परमात्मा को जानने समझने वाले सिद्ध जन उसके जैसे ही पवित्र तथा निर्विकारी होते जाते हैं. सभी धर्मों के इतिहास में एक तथ्य बिल्कुल सामान्य है और वह यह कि सभी में सिद्धव्यक्ति हुए हैं … सभी सिद्ध व्यक्तियों ने परमात्मा को निर्विकार तथा निराकार परमशक्ति जाना तथा माना … और सभी सिद्धों ने अपने आश्रितों, अनुयायियों को परमात्मा का दर्शन परमात्मा के वर्णन से कराना चाहा ..। और सभी धर्मों के अनुयायियों ने ऐसे सिद्ध व्यक्ति को ही ईश मानकर पूजना शुरु कर लिया… ! उस सिद्ध की सिद्धि का उद्देश्य भ्रमित जनसामान्य का भ्रमजाल तोड़कर उसे परमात्मा से परिचित कराना था किन्तु लोगों ने उस सिद्ध के रूप में एक नया ही भ्रमजाल ओढ़ लिया.. ! फिर चाहे वे जीजस क्राइस्ट रहे हों, मोहम्मद साहब या श्रीराम या आचार्य रजनीश या गुरुनानक देव जी या फिर कोई भी अन्य सिद्ध..