‘बडा़ दुख होता है…’ जब देखता हूँ कि.. हमारी कॉलोनी जैसे और भी कितने ही एरियाज में, घरों के बाहर सड़कों पर भी, पेड़ भर भर के फल लगे रहते हैं, जो डाली पर लगे लगे ही पक जाते हैं.. शायद इसलिए कि ऐसी जगहों पर ‘निष्क्रिय भारतीय’ या ‘निकम्मे हिन्दुस्तानी’ ही ज्यादा बसते हैं..!
#एक्टिव_इंडिया यानी #डिफेक्टिव_इंडिया का ठीकठाक प्रभाव होता तो क्या मजाल थी कि किसी घर के पेड़ का कोई एक भी फल पकने की उम्मीद तक रख पाता!
“ऐसा खूबसूरत खयाल हमारा नहीं हमारे गुरूजी महाराज स्वप्निल-प्रभुश्री का है..!”