सतदर्शन – 2 ‘जीवनसफल’
इच्छित मिल जाये तो खुशी मिलती है!
खुशी का मिलना सुखकर है! जीवन का अधिकांश हिस्सा सुखकर हो तो जीवनसफल है…!
यानी “सुख और खुशी” के आधार “आनंद” के पल हैं..!
और *आनंद* *प्राप्ति* में है!
किन्तु प्राप्ति के केवल 2 ही मार्ग हैं 1ला संघर्ष का और 2रा समर्पण का…! संघर्ष एवं समर्पण बिना कैसी भी प्राप्ति संभव नहीं!*
अल्पसंघर्ष से अधिकतम की प्राप्ति सुविधा है।
*सुविधाओं* की *प्राप्ति* में *सुख* है.. !
अर्थात अगर जीवन में *सुविधायें* हों तो *जीवनसरल*, *सुखकर* और सफल हो जाये!
कहते हैं हमारे व्यवहार पर ही हमारे जीवन की सफलता निर्भर है.. और इसी किये जाते व्यवहार पर ही कर्मफल यानी भाग्य या दुर्भाग्य का भी निर्धारण होता है!
तभी तो कहा गया है कि
“एक हाथ दे.. एक हाथ ले!”
“जो बोओगे सो काटोगे!”
“सब यहीं रखा रह जायेगा… बस किया ही साथ जायेगा!”
लेकिन *सुविधायें* कैसे होंगी यदि आपके पास सुविधा पाने या खरीदने की योग्यता ना हो? सुविधाएं भी केवल 2 ही तरह से पाई जा सकती हैं… एक धनखर्च कर… दूसरा बार्टर (अदलाबदली) कर के…
अब तक तो संसार में किसी की भी इतनी खरीद क्षमता कभी हुई नहीं… और ना ही शायद कभी हो पाये… कि कोई केवल खरीदकर जीवन की सभी आवश्यकतायें, आराम और सुविधाएं पा सके, पूरा जीवन किसी से भी कैसा भी वार्टर किये बिना जीवन जी सके…
परिवार और समाज में यह बार्टर(अदलाबदली) ही ‘व्यवहार’ कहलाता है..!
उचित व्यवहार अनगिनत अपनों का साथ सम्भव कर देता है… अपनों बिना कैसी अपनी दुनियाँ? https://youtu.be/NTX76hKpp1I
तार्किक दृष्टि से देखें तो सचमुच व्यवहार ही सुख का आधार है!
(… अगले अंक में “सफल व्यवहार”)