सतदर्शन – 3 ‘सफल व्यवहार यानी सभ्यता ?’
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सभ्रांत समाज के तौरतरीकों से; कोई भी, जन्म से तो परिचित नहीं ही हो सकता… समय के साथ-साथ अपने परिवार फिर सभ्य समाज के अनुकूल व्यवहार करते करते.. आजीवन उपयुक्त-अनुपयुक्त आचार विचार देखते-सुनते, अपने संस्कार और व्यवहार, हर दिन हर कोई परिष्कृत करता ही रहता है..!

जिसका स्वपरिष्करण से विरोध होता है, वो सभ्रांत समाज में पिछड़ जाता है.. और कालांतर में सभ्रांत समाज में अस्वीकृत भी कर दिया जाता है..!
पिछली कुछ सदियों से अब तक, समूचा विश्व, सर्वाधिक सभ्रांत परिवार के रूप में, बकिंघम पैलेस निवासी राजघराने को देखता रहा है! बकिंघम पैलेस; जो इंग्लैंड की रानियों से शासित देश के, राजघराने का आवास है..!
बकिंघम पैलेस तो सशक्त अंग्रेजी सभ्यता का वैश्विक प्रतीक है किंतु; भारत के ‘तुलनात्मक छोटे रजवाड़ों’ की भी अपनी ही आन बान शान से भरी सभ्यता रही है… जो कहीं से भी बकिंघम पैलेस वालों से 19 नहीं बल्कि 21ही रही है..
फिर चाहे वे राजघराने राजस्थानी, पंजाबी, मराठी, द्रविड़, मालवी, बघेली, बुंदेलखंडी रहे हों.. या फिर लखनबी, हैदराबादी, फतहपुरी, भोपाली बादशाहतें ..
या छोटी-मोटी सीतापुर, टीकमगढ़, राघौगढ़ जैसी रियासतें..
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भले आज इंग्लैंड के बाहर बसे ये राजघराने अब मान्य नहीं रहे.. किंतु इनके कुल से संबंधित लोगों जैसा व्यवहार, आज भी आम लोगों को आकर्षित करता है..!
वैसे ही जैसे राजे-रजवाड़ों के दिनों में, उनकी सारी प्रजा, मानती थी.. समझती और सीखा भी करती थी..!
संसार में बड़े बड़े उद्दंड और आतातायी भी, शुरू से ही, हुए अवश्य हैं.. किंतु पिछली सदी तक.. वे गिने-चुने चोर-उचक्कों और अपराधियों मात्र के ही, आदर्श बन सके…! समय के पहिये के घूमने के साथ वर्तमान वैश्विक मानसिकता बदलते गई, भारत में भी बड़ा क्रांतिकारी परिवर्तन देखने मिल रहा है..
आज के संसार में दुष्ट, चोर, उचक्के, ठग, लुटेरे, हत्यारे, बलात्कारी सहित हर तरह के अनैतिक तथा आतातायी और अपराधी लगभग आधी जनसंख्या का आदर्श बनते दिख रहे हैं..!
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आज अनेक घरानों में तो उद्दंडता, असभ्यता, दुष्टता, लफंगई, गुंडई, लूट हत्या, व्यभिचार और बलात्कार जैसे अवगुण तक अपनाने योग्य गुण माने जाने लगे हैं..
तो क्या सभ्यता, संस्कार, सदाचार यानी सभ्रान्तता को बीती शताब्दी तक ही उपयुक्त मान वर्तमान में त्याज्य मान लेना चाहिये?
मेरे मत में तो कतई नहीं..
इस पतनोन्मुख आँधी की तरह फैलती अवधारणा का वध करने में सज्जन असमर्थ रहे तब स्वयंं परमात्मा को हस्तक्षेप करना पड़ा..
इस हस्तक्षेप के ही रूप हैं- बर्ड फ्लू , कोविड, तूफानी वर्षा, उल्कापात, भूकंप, भूस्खलन आदि जैसे भयानक शब्द… किन्तु ये और भयावह शब्दों द्वारा स्थानापन्न होते लग रहे हैं..!
यही बात मैं; और मेरे जैसे अन्य, विगत वर्षों से कह कह कर सचेत करते आये हैं.. कि प्रकृति के अनुरूप अनुशासित हो जाईये.. व्यवस्थित हो जाइये.. 2 साल पहले तक तो सभी ने अनसुना किया किंतु कोरोना, उल्कापात, पर्वत-क्षरण, भूकंप, झंझावातों के थपेडों ने आखिर सारे संसार को सदाचार की ओर.. प्रकृति की ओर चलने प्रवृत करना प्रारंभ कर ही लिया.. !
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इस तरह विगत मात्र 1 साल में दुनियाभर के पतनोन्मुख लोगों में से अधिकांश सदाचार की ओर वापस लौटने, स्वयंं परमेश्वर द्वारा, विवश कर दिये गये..!
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तो अब आप और हम क्या करें?
हम अपराधियों को अपना आदर्श बनायें?
या राजघरानों को?
या फिर #फकीरी को?
मुझे लगता है सबल संतुलित सज्जनता ही सर्वश्रेष्ठ पथ है… जिसपर अगले अंक में चर्चा जारी रखेंगे आप और हम…
– ‘सत्यार्चन’