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सतदर्शन – 4 “क्या तब भी सतस्थापना की आशा की जाये जब राजा दुर्योधन  सा हो…?”

सतदर्शन – 4 “क्या तब भी सतस्थापना की आशा की जाये जब राजा दुर्योधन  सा हो…?”

( निवेदन- मूल प्रस्तुति पर जाने से पूर्व कृपया इन 5 निवेदन पर विचार अवश्य कीजिएगा! धन्यवाद्!
1-  *जैसा परंब्रह्म प्रेरित करते हैं! वैसा ही ‘सत्यार्चन’ करते हैं.. सद्गुरु वही कहते हैं.. जो वे स्वयं करते हैं!*
2- निष्कर्ष तक पहुंचने ; कृपया; वीडियो /आडियो/आलेख को ध्यानपूर्वक पूरा देखिये/सुनिये/ पढ़िये!
3- – पसंद आये तो अपवोट कीजिये… नापसंद हो तो भी जताइए!
4- -शंका, समर्धन या विरोध जो भी हो प्रतिक्रिया में दर्शाइये!
5- -सत्यार्थ हमारे चेनल / ब्लॉग / वीडियो को लाइक, सब्सक्राइब, साझा कीजिये.. सत्य का यथोचित अनुसरण, अनुपालन, प्रचार और प्रसार भीौ कीजिये…)


द्रौपदी को नग्न करने का प्रयास हो रहा था.. बाहुबली दुशासन के निर्देशन में  राजसभा में द्रोपदी के मानमर्दन का प्रयास चल रहा था…


वो भी अनेक महाबलियों की उपस्थिति में… किंंतु सब के सब निष्क्रिय… नि:स्वर… निस्तब्ध … निस्तेज नतानन बैठे रहे थे सब के सब…! 
वो कोई ऐरे गैरे गुण्डे-मवालियों जैसे  बाहुबली भी ना थे… वे सभी नपुंसकता धारण कर बैठे हुए महाबली दरबारी थे… 

मगर वो दरबार, नव नियुक्त निरंकुश छलीबली बाहुबली दुर्योधन का था… 


दुर्योधन को पहले कौन ललकारे शायद यही असमंजस रहा होगा तब.. उस पल…


भीष्म जैसे महाप्रतापी दुविधा में ही रह गये होंगे कि पिता की प्रेयसी को माँ बनने की प्रार्थना के समय, माता पिता को दिये वचन के साथ रहूं…  या घटित होते अधर्म के विरुद्ध उद्घोष कर निजी प्रण तोड़ दूँ..?

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शायद  ऐसी ही कुछ दुविधायें सभी सभासदों के मन में भी रही होंंगी और शायद इसीलिए ही आगे बढ़कर अनैतिक के विरुद्घ अधर्मियों को ललकारने और धर्मियों  को एकजुट होने की पुकार लगाने की हिम्मत कोई भी नहीं कर सका…
यदि की होती ?
एक होकर सभी  धर्मी दरबारी खड़े हो गये होते तो?
… तब भी क्या उस अधर्म की ऐसी परिणति होती  जिसमें सबकुछ भष्म हो  गया?
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ऐतिहासिक महासमर महाभारत के अंत में दोनों ही पक्षों में से कोई नहीं बचा था ना धर्मियों से ना ही अधर्मियों में से… बचे थे तो केवल विक्षिप्त अस्वत्थामा और उत्तरा के गर्भ में पलता भारतवंश का सूत्र…
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“हमें क्या!” या “मैं ही क्यों?” की लापरवाही सबकुछ छीन लेगी…  और सब छिनने के बाद अगर होश आया भी कि… “हम ही क्यों नहीं…” या “मैंने ही क्यों ना किया…?”
तो क्या लाभ?


… क्या लाभ जब चिड़िया चुग जाये  खेत…

जागना है तो अभी जागें…  अभी तक भविष्य में दावानल बनते दिखती चिंगारी केवल मशाल ही बनी है… ज्वाला नहीं!  शायद अभी भी सबकुछ भस्म होने से या बहुत अधिक खोने से बचा जा सके…!


वर्तमान समय में पूरी भारतीय सांस्कृतिक विचारधारा का कैसा वैचारिक शीलहरण निरंतर जारी है… और हम सब कैसे मतिभ्रम में… मंत्रमुग्ध से.. हाथ पर हाथ धरे  बैठे है..? के विषय पर एक तथ्यात्मक  वीडियो प्रस्तुत है.. जरूर देखिएगा! पूर्वजागृत हों या अभी अभी जागे हों… संस्कृति संरक्षण हेतु ऐसे कंटेंट/ वीडियो को हमेशा लाइक, सब्सक्राइब, साझा और प्रचारित भी कीजिएगा! धन्यवाद्!


वीडियो लिंक –

पुनरुत्खनित इतिहास – 1 https://youtu.be/BaACathqjEk

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Author: traffictail

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