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कहाँ हो तुम..?

सुनो आज फिर एक खास त्यौहार है.. एक खास दिन और जीवन में ऐसा तो कभी हुआ नहीं कि कोई खास पल हो… खास दिन… खास मौका… खास जगह…. या खास साथी का साथ ही हो.. और तुम्हारी याद ना आई हों… ऐसा कभी नहीं हुआ…

आज रक्षाबंधन है… भाई बहनों का त्यौहार…. ये वाला कुछ ज्यादा ही खास है मेरे लिए… इसीलिए तुम्हारी बहुत याद भी सता रही है…

तुम्हें बहन तो नहीं कह सकता… मानता भी नहीं और तुम्हें ही क्यों … मेरी रक्त संबंधी बहनों के अतिरिक्त और किसी को भी… बहन नहीं मानता… क्यों मानूं? अगर मान भी लूं तो क्या वह मानी हुई बहन… मुझे अपने भाई सा मान दे पाएगी?

मेरे लिए रिश्ते अनमोल हैं… परिवार और समाज भी… और सामाजिक मान्यताएं भी… किन्तु बहुत दुखद है कि आज के दौर में, अधिकांश लोगों के लिए, रिश्ते और मान्यताएं केवल आवरण बचे हैं… वो आवरण जिन की आड़ में वे अनैतिक आचरण सुविधाजनक तरीके से कर सकें…!

नहीं नहीं यह आवरण वाली बात मेरे-तुम्हारे संबंधों पर कहीं से कहीं तक भी लागू नहीं होती… बस यूं ही बात निकली तो वो फिलासफी भी सामने आ गई जिसके कारण मैं तुम्हें किसी रिश्ते में बांधकर नहीं देखना चाहता… ! तुम मेरे दोस्त से बढ़कर थीं… और हो.. कम से कम मेरे लिए… मेरी तरफ से तो हो.. और यही काफी है! ना मैंने कभी तुमसे शादी और शादी के बाद या पहले वाली अंतरंगता (सेक्स) पर ही कभी भी सोचा… ना ही अब तक सोच पाता हूंँ… शायद कभी न सोच पाऊँ… तुमसे लगाव तो है… बहुत गहरा लगाव… लेकिन यह लगाव कुछ पाने का नहीं और है भी तो बस तुम्हारा साथ… कुछ वैसा ही… जैसा मेरे बाकी दोस्तों का साथ है… उनसे सम्पर्क होना… उनसे बात करना.. अच्छा लगता है मुझे.. सुकून देता है… और तुम्हारे ख्याल का आ जाना भी..!

तुमसे बात करना उन सब दोस्तों से बढ़कर है..! अब मैं मेरे उन सभी दोस्तों से सेक्स तो नहीं सोच सकता ना? ना ही उन सभी को मैं मेरा भाई ही कह सकता… हालाकि वो मेरे रक्त संबंधी भाइयों से बढ़कर हैं… ऐसी ही वो अनेक सखी सी महिलाएं भी हैं जो मेरा आदर करती है… मेरा मान करती हैं… अनेक अवसरों पर मुझसे सहायता ले लेती हैं और… अनेक अवसरों पर मेरी सहायता कर भी देती हैं … क्या उन सभी से मैं किसी रिश्ते की आशा रखूं?

उन सबसे कैसी भी आशा… क्यों रखूँ?

… फिर भी तुमसे तो है.. एक अलग सा रिश्ता भी! दुनियां के प्रचलित रिश्तो से बहुत अलग… क्या नाम दूं?

कोई ऐसा रिश्ता है ही नहीं … !

रक्षाबंधन विशेष!

हां एक रिश्ता था पौराणिक इतिहास में… किंतु आज के दौर ने उस रिश्ते को पतित कर दिया… वह रिश्ता जो अति पावन था… राधा कृष्ण का रिश्ता!

राधा रानी तो कृष्ण और यशोदा के बीच की पीढ़ी की थीं… कृष्ण से बहुत बड़ी… और कृष्ण के किशोर होने से भी पहले ही राधा कृष्ण अलग अलग नगरों के वासी हो गए थे… तब से राधा दोबारा कृष्ण से कभी नहीं मिलीं.. फिर भी आज के युग ने राधा-कृष्ण को प्रणयीयुगल बना कर स्थापित भी करा दिया…!

इसीलिए राधा कृष्ण के प्रेम की पावनता को जानते और मानते हुए भी मैं उस उत्कृष्ट प्रेम को भी मेरे-तुम्हारे प्रेम के सापेक्ष नहीं बता सकता…! क्योंकि सतही सोच संचालित आज का समाज यदि मेरे तुम्हारे रिश्ते को भी वैसा ही दूषित कर देखने लगा तो मुझसे सहन नहीं हो पायेगा…

यदि हुआ तो मरने से पहले दुनियाँ को आग लगाकर मरूँगा और मरने के बाद भी भूत बनकर तबाही मचाते ही रंहूँगा…!

चलो बहुत बात कर ली आज… त्यौहार भी है.. तुम भी अपने परिवार के साथ व्यस्त होओगी… शायद मुझसे बहुत ज्यादा… इसीलिए… विदा लेते हैं… और फिर कभी मिलते हैं… ख्यालों में… किसी और खास मौके पर… अपना और अपनों का ख्याल रखना! विदा!

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Author: traffictail

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