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आदिकालिक जमाखोरी, मुनाफाखोरी और श्रमिक शोषण निरंतर क्यों हैं?

आदिकालिक जमाखोरी, मुनाफाखोरी और श्रमिक शोषण निरंतर क्यों हैं?

सबसे बड़ा कारण तो यही है कि शोषक स्वयं अपने शोषण से विशेष अप्रसन्न नहीं.. अमूमन लोग सन्तुष्ट हैं!

दूसरे समूचे संसार में फैली इस बीमारी का निराकरण असंभव जितना कठिन है!

आईये इन अनिवार्य बुराईयों की उत्पत्ति विकास और युक्तियुक्तकरण का संक्षिप्त दर्शन करें!

आदमयुग में ही आवश्यकताओं ने विकास को जन्मा। आगे विनिमय फिर मुद्रा का जन्म हुआ। मुद्रा जिसने विनिमय (अदला बदली) का माध्यम बन आवश्यकताओं का आदान प्रदान सुसंगत व सुविधाजनक कर दिया!

किंतु इस जादुई माध्यम मुद्रा ने जन्मने के तुरंत बाद ही आपदाकाल में सहायक के नाम पर स्वयं को संग्रहणीय सिद्ध कर दिया! कालांतर में आपदाकलीन आवश्यकता से बहुत अधिक संचित मुद्रा के धारकों ने अपनी संचित मुद्रा से कम उत्पादित किंतु उपयोगी वस्तुओं का पारिवारिक आवश्यकता से अधिक और बहुत अधिक भी संचय करना शुरु कर दिया… और बाद में वे अपने संचित को मनमाने दामों पर बेचने लगे!

कुछ इसी तरह किसी समय ‘जमाखोरी की नींव पर व्यापार की आधारशिला रखी गई होगी!

इस तरह मध्यस्थ मुद्रा के संचयी धारक स्वयं ही मध्यस्थ बन बैठे और संसार में सर्वोपरि होते गये.. जो आज तक हैं!

सभी प्रकार के उत्पादों तथा सेवाओं के व्यापारी आज भी आवश्यकताओं के विनिमय में मध्यस्थ की भूमिका में ही हैं! सभी मध्यस्थ व्यवसायी सभी तरह की उत्पादकता के सृजकों को (उत्पाद या सेवा के कुशल या अकुशल श्रमिकों) को उनके श्रम का उचित से कम मूल्य चुकाकर उनसे पाना चाहते हैं! इस उद्देश्य को पाने के लिये मध्यस्थ जमाखोर व्यापारी अग्रिम भुगतान, नियमित वेतन, भविष्य निधि आदि के जाल में फंसा श्रमिकों को आदिकाल से अब तक बंधुआ बनाते आ रहे हैं!

ऐसे ही और भी अन्य अनेक तरीकों से मध्यस्थ; न्यूनतम श्रम मूल्य चुकाकर अधिकतम उत्पादकता पाते भी हैं और उसका संचय या केंद्रीकरण भी करते हैं! जिसे अपने विकसित तंत्र के माध्यम से उपभोक्ता को ऊंचे दामों पर उपलब्ध कराकर लाभार्जन करते हैं!

निराकरण कठिन या अनुपलब्ध इसलिए हैं कि आवश्यकतायें अनंत हैं और कोई भी अपनी समस्त आवश्यकतायें स्वयं उत्पादित नहीं कर सकता! इसीलिए समय बीतने के साथ साथ जमाखोरी, मुनाफाखोरी और श्रमिक शोषण को न्यूनतम पर रखने के युक्तियुक्त प्रयासों से ये वर्तमान में परिलक्षित और सर्वस्वीकार्य स्वरूप में हैं! कभी कभार होती हड़तालों के अलावा सब ठीक है!

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Author: traffictail

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