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मूढ़जन स्वयं ही अपना दुर्भाग्य सजाते हैं!


पिछले #संचित_श्रापों_की_सजायें तो सभी भुगतते हैं!

किन्तु #उचित_अनुचित, #पुण्य_पाप, शुभ_अशुभ का भेद जानते हुए भी; जो जन
नित नवश्रापों को #आमंत्रित_करते_हैं…
वे मूढ़जन स्थाई #सुख_संपन्नता से सदैव वंचित रहते हैं!
-‘#सत्यार्चन_का_सतदर्शन’

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Author: traffictail

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