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चुनाव प्रचार, परिणाम और सर्वेक्षण में इतना अंतर क्यों?

(‘मसला’ से साभार) भाई #अरविंद_केजरीवाल जी के #फेसबुक_लाइव पर ‘महत्वपूर्ण कमेंट्स’!

आम जनता और स्थानीन राजनैतिक #कार्यकर्ताओं_के_लिए तो भाई अरविंद केजरीवाल जी भी #विपक्षी_पार्टी के ही हैं ! और वर्तमान #सत्ताधीशों द्वारा #विपक्षियों की नियंत्रित या निर्मित #मीडिया_इमेज सदैव से ऐसी ही कुछ रही है जैसी इस ‘फेसबुक लाइव’ पर ‘#लाइव_कमेंट्स’ में शीर्षस्थ वर्गीकृत कमेंट के माध्यम से प्रदर्शित है …! मजेदार बात यह है कि बीते दिनों #पंजाब_विधानसभा के चुनाव के समय भी भाई केजरीवाल की #मीडिया_रिपोर्ट्स ऐसा ही कुछ दर्शा रही थीं … इसी तरह बंगाल #विधानसभा_चुनाव के समय बहिन #ममता_बनर्जी जी की भी फेसबुक जैसे विशालकाय प्लेटफार्म सहित अन्य सोशल मीडिया और राष्ट्रीय चेनल्स पर भी ऐसी ही दयनीय स्थिति थी और उनके प्रतिस्पर्धियों की बहुत ही सशक्त उपस्थिति दिखती थी.. फिर भी… दोनों ही जगह चुनाव परिणाम उन मीडिया रिपोर्ट्स में तुच्छ दिखते या दिखाये जाते लोगों के पक्ष में कैसे चले गये?

इसी तरह पूर्व #कांग्रेस_अध्यक्ष #राहुल_गांधी जी को अर्धविकसित मानसिक छविधारी दर्शाने के लिए, उन्हें पप्पू कहा ही नहीं गया बल्कि एक तरह से सिद्ध ही कर दिया गया! उन्हें एक ऐसे व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत कर स्थापित कर दिया गया जो किसी भी तरह की सामान्य योग्यता से वंचित है. जो सामान्य बातचीत करना भी ना जानता हो… ना जिसका व्यवहार सामान्य के निकट ही हो सकता हो! जबकि “भारत जोड़ो” के लाइव कवरेज में राहुल गांधी जीं एक #ऊर्जावान, #बुद्धिजीवी की तरह #सड़कों पर चलते फिरते और मीडिया के सवालों के बधे हुए जबाव देते जीवंत पूरे देश में देखे जा रहे हैं …!

मीडिया आखिर इस तरह से मेनेज कैसे हो गया?

जबकि वर्तमान युग में तो मीडिया सोशल हो या राष्ट्रीय विभिन्न सामाजिक, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों का दर्पण यह डिजिटल मीडिया ही माना जाता है…!

फिर ऐसा कैसे हो रहा है? कहाँ क्या छूट रहा है? क्या चूक रहा है? देश सच कब से देख सकेगा ? क्या देश; कभी मीडिया पर सच देख भी सकेगा ?

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Author: traffictail

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