कहीं ना कहीं से.. रोज़ रोज़ आते
खिलते खिलखिलाते
कभी लाल कभी पीले
कभी गुलाबी
रोजेज देखता हूँ…
तो

श्वेत से निकलकर
पिंक होने लगता हूँ!
जाने मैं बढ़ रहा हूँ
या और और और अधिक
घटते जा रहा हूँ !
जाने यह राह है
या अब और अधिक
भटकने जा जा रहा हूँ!
मैं बढ़ रहा हूँ
या घटते जा रहा हूँ..
हाँ मगर यह तो तय है
कि थमा नहीं हूँ
मंजिल भी नहीं मिली है
और मैं हारा भी नहीं हूँ
चल रहा हूँ मैं
चलते.. चला जा रहा हूँ…