सुख चाहिये? ये लीजिये -4
जीवन दर्शन
*जो #निर्लिप्त जीवनयापन में सक्षम हो जाये उसे संतत्व की प्राप्ति हो चुकी है…*
*ऐसा संत यदि #जीवनदर्शन को समझकर, समझाने का भी प्रयास करता है वह #साधु है!*
*उसे #मोक्ष सहज है….*
मेरी प्राप्तियों को मैं यहाँ साझा कर रहा हूँ!
*कोई अन्य सिद्ध व्यक्ति, साधु, महात्मा, पीर, फकीर या अवतार भी केवल तुम्हारा मार्गदर्शक हो सकता है किन्तु प्रदाता कदापि नहीं! तुम्हारी सफलताओं और असफलताओं दोनों के उत्तरदायी तुम ही हो!*
हानि, लाभ, जीवन, मरण, यश, अपयश; विधि हाथ ••• (विधि = किसी भी कार्य को करने का तरीका)
जन्म और मृत्यु के मध्य ही समस्त जीवन_दर्शन है…
सर्वोत्तम जीवन संतभाव से ही जिया जा सकता है
जिसमें तुम-
“प्रयासरत रहो और परिणाम से अविचलित भी!”
प्रगति करना तुम्हारा कर्तव्य है! प्रगति पथ पर अग्रसर रह प्रत्येक प्रयास में अपनी सर्वोत्तम प्रवीणता का प्रयोग करो ! ऐसे प्रयास में असफल रहने पर हतोत्साहित होने के स्थान पर प्रयास और प्रवीणता की त्रुटियों को खोजो और दूर करो ताकि भावी अवसर का भरपूर उपयोग कर सको!
किन्तु अपने प्रयास के सफल होने पर सफलता के उत्सव में इतने मदमस्त ना हो जाओ कि अगली सफलता के अवसर ही चूक जाओ!
“आस सदैव बनाये रखो किंतु निरास होने पर आहत ना हो!”
मनुष्य सामाजिक प्राणी है अतः मनुष्यों में आपसी व्यवहार सामान्य प्रक्रिया है! अधिकतर आपको अपने किये व्यवहार का प्रतिफल वैसा नहीं मिलता जैसी आपकी अपेक्षा थी! किन्तु यह स्वाभाविक है क्योंकि किसी व्यवहार में आप प्रवीण और सक्षम हो सकते हो किसी में सामने वाला! अतः आशानुरूप प्रतिफल की अपेक्षा अनुचित नहीं किन्तु अपेक्षित प्रतिफल की अप्राप्ति में सामने वाले की स्थायी या तात्कालिक सीमितता मान कर अनाहत रहने का प्रयास करें!
“प्रतिपल मृत्यु के वरण को तत्पर तो रहो किंतु आतुर नहीं!”
जन्म पर तुम्हारा कोई वश नहीं था किन्तु हुआ तो मृत्यु भी सुनिश्चित है! अटल है! अपरिहार्य है!
मृत्यु कभी असमय नहीं आती, अज्ञात किन्तु निश्चित समय पर ही आती ! ना टालने से मृत्यु टल सकती ना बुलाने से आती •••
इस पर किसी का कोई वश नहीं ••• फिर इसके स्वीकार के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं ना •••
तो मृत्यु के स्वागत को तैयार रहना ही उत्तम है ••• तुम्हारे बाद तुम्हारे अपनों की चिंता भी व्यर्थ है •••
ठीक वैसे ही जैसे तुम्हारे पूर्वज, जो थे, आज नहीं हैं, और तुम हो ! सहज ही हो! यही सत्य है!
#SathyaArchan