बिष वमन तो आवश्यक है!
(विशेष – विक्रम अवार्ड सम्मानित विश्व प्रसिद्ध खिलाड़ी
अनुया लोणकर जी का धन्यवाद
जिनसे प्राप्त व्हाट्सएप संदेश का विस्तार मात्र है यह लेख!)
प्रक्रति का नियम है “जो आया है सो जायेगा!”
कुछ भी स्थायी नहीं ••• सम्पूर्ण जगत ही नश्वर है!
किन्तु आकर जाने से पूर्व हर एक को अपना प्रभाव छोड़ने का अधिकार भी प्राप्त है!
फिर चाहे वह व्यक्ति हो, जीव-जन्तु, वनस्पति, औषधि, विष, या विचार ही क्यों ना हो!
एक और विशिष्टता है प्रकृति में उपलब्ध प्रत्येक रचना की उपयोगिता की समय सीमा यानी आयु निर्धारित है!
जिसकी जितनी बड़ी आयु वह उतना ही अधिक शुभ या अशुभ!
शुभ और शुभ के मिलन से सामान्यतः शुभ ही जन्मता है
किन्तु शुभ में अशुभ के मिलन से अधिकतर अशुभ की उत्पत्ति होती है!
प्रकृति के यही नियम हमारे शरीर पर / हमारे जीवन पर /हमारे व्यक्तित्व पर भी लागू हैं!
हम जीवित रहने के लिये भोजन करते हैं, पानी पीते हैं, स्वास में वायु खींचते हैं,
प्रकृति इनका शुभांश ग्रहण कर हमारे रक्त में सम्मिलित कर देती है
और अपशिष्टों (विषों) को निष्कासित कर देती है!
अपशिष्टों / बिषों में से भोजन का 24 घण्टे में, पानी का 4 घंटे और वायु का अपशिष्ट कुछ ही पलों में
बाहर निकल जाना आवश्यक है,
यदि इस निर्धारित समय में अपशिष्टों का निष्कासन ना हो तो हम बीमार हो जायेंगे ,
बहुत अधिक देर होने पर तो मर भी सकते हैं।
सुंदर, स्वस्थ, सबल व सुडौल शरीर के लिए सात्विक, सुपाच्य व पौष्टिक भोजन की आवश्यकता होती है!
व्यसन व विष वर्जित हैं! ठीक यही नियम वैचारिक भोजन पर भी लागू होते है!
जीवन में प्रतिदिन हमारा अनेकानेक विचारों से सामना होता है•••
इनमें से सकारात्मक दया, कृपा, क्षमा, सौहार्द्रता, सरसता जैसे गुणों को
ग्रहण कर हमारे स्वभाव में सम्मिलित किया जाना चाहिये!
नकारात्मक अपशिष्टों को, जैसे कि घृणा, गुस्सा, ईर्षा, असुरक्षा…. आदि आदि, को
अपने अंदर से प्रयास पूर्वक ही सही वमन करने निष्कासित करते रहने से ही
स्वस्थ, बलिष्ठ, सुंदर, सुडौल व्यक्तित्व का निर्माण संभव है।
सामान्यत: इन नकारात्मक विचारों को हम दिनों, महीनों, सालों अपने अंदर संजोये रखते हैं!
ये व्यसन, एक दिन विष बन हमें निश्चित ही मानसिक रोगी बना देंगे।
निर्णय आपका !
आखिर•••
जीवन है आपका!
#SathyaArchan