सनातन संस्कृति अनूठी है… नियति में निरंतर घटित से छोटी बड़ी प्रेरणाओं का सम्पूर्ण स्वरूप है… सनातन…!
जब अंधकार आसन्न हो..।
संध्याकाल रात्रि के घोर अंधेरे के आगमन की उद्घोषणा कर रहा हो…
तब स्वयं को उस अंधेरे को सौंप कर
किंकर्तव्यविमूढ़ होने के स्थान पर हमारे पूर्वजों ने
दीप प्रज्वलित करने की रीति बनाई…
मार्गदर्शन हेतु है दीपक की ज्योति!
जो प्रयास एवं युक्ति पूर्वक तनिक से श्रम और उत्सर्ग से प्रकाश को उत्पन्न करती है…
प्रकाश; जो अंधेर के कारक अंधेरे का आवरण हटाकर ज्ञान को जागृत रखता है…
प्रकाश जो तुम्हें कालरात्रि के सामने विवश हो निष्क्रिय नहीं होने देता…
अन्यथा तुम हाथ पर हाथ रखे बैठे रहकर या सोकर नियति निर्धारित प्रात के प्राकृतिक प्रकाश की प्रतीक्षा को विवश हो जाते…
इसीलिए आवश्यक उचित विराम या विश्राम से पहले, दीपक की ज्योति अर्थात प्रकाश पुंज अर्थात मार्गदर्शक द्वारा प्रदर्शित परिदृश्य का अवलोकन कर आवश्यकतानुसार प्रकाश (बुद्धि / मार्गदर्शक) का उपयोग करना ही श्रेयष्कर है…!
पूर्वजों की संध्याकालीन दीप प्रज्वलन की रीति से प्रेरित मनीषी दीप-ज्योति को प्रतीक बनाकर अंधकार का हरण करने वाले पथप्रदर्शक/ प्रकाशक को परंब्रम्ह की उपाधि से विभूषित करते हैं!
मनीषी अभिमत है कि जब अंधकार आमुख हो तब, जब होते हुए और हो चुके अंधेरे में, रीति-नीति के विपरीत कलुषित का होना, अवश्यंभावी हो… उस समय, स्वसंसाधित या अन्यत्र से प्रकीर्ण, दीप-ज्योति/ मार्गदर्शक; परंब्रम्ह ईश्वर सम है!
मनीषियों का अभिमत यह भी है कि प्रत्येक विपरीत समय के आगमन की सूचना मिलते ही (जैसे प्रत्येक संध्या बेला में), उस ईश/ मार्गदर्शक/ ज्योत/ जनार्दन से प्रार्थना करें-
✍️ दीपो ज्योति परं ब्रह्मं दीपोज्योतिर्जनार्दन:
दीपोहर्तु मे पापं दीप ज्योति नमोस्तुते
शुभं करोति कल्याणं आरोग्यंसुखसंपदां
दुष्टबुद्धि विनाशाय च संध्या दीपो नमोस्तुते
????शुभ संध्या वंदन हेतु निवेदन सहित समस्त आदरणीयों, गुरुजनों को प्रणाम!!????
1- हे परंब्रम्ह जनार्दन स्वरूप दीपज्योति आप मुझे पापों से दूर रखने वाली हो आपको मेरा प्रणाम!!! (नमन्!)
2- हे दीपज्योति आप ही शुभ तथा कल्याण करने वाली, आरोग्य तथा सुख-संपन्नता की कारक हो!
3- (हे दीपोज्योति) मेरे अंदर उपस्थित दुष्टबुद्धि / कुबुद्धि/ शत्रु बुद्धि का नाश कीजिए! आपको मेरा प्रणाम!!! (नमन्)!
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-सुबुद्ध