कोरोना के इस भयानक दौर में, नागपुर के एक अस्पताल में, “ईश्वर” आये और अपने पति के प्राणों की रक्षा में असहाय होती, एक रोती बिलखती महिला को उसके पति की जीवनरक्षा के लिए स्वयं को मिला बेड देकर यानी जीवन ही देकर चले गये… उन सज्जन में ईशानुभूति नहीं होती..? मेरे मत में तो उस समय तो वे स्वयंं ही दयालु कृपालु भगवान थे!
क्योंकि ईश्वर, सदैव ही, धरती पर अपनी उपस्थिति, किसी ना किसी जागृत विवेक के स्वामी के अंदर बैठकर ही दर्शाते आये हैं..!
श्रीराम 12 कलाओं में तो श्रीकृष्ण 16 कलाओं में पारंगत होकर स्थाई ईशोपस्थिति के सर्वविदित वैश्विक उदाहरण हैं…
महर्षि दधीचि, महर्षि बाल्मीकि आदि से लेकर अब तक अनेकानेक जागृत विवेकी मनुजों में उनकी चेतना जीवंत होकर उन्हें शक्तिसंपन्न करती है…!
किसी किसी को इतनी शक्ति भी प्राप्त होती है कि वे बहुजन के हित में या अन्य के हित में स्वयंं के उत्सर्ग को सहर्ष तत्पर हो सकें…!
युद्ध में अपनी टुकड़ी, अपने देश के हित में बलिदान देने वाले सेनिक भी इसी श्रेणी में आते हैं…
और इन वृद्ध सज्जन जैसे उदारमना भी…
आज के इन दधीचि को मेरा सादर प्रणाम!