विषधर वर्तमान…
कोई हैरान.. परेशान… भटकता सा दिखे.. और हम आगे बढ़ कर उससे उसकी परेशानी पूछ लें…
उसको उसकी मंजिल की सीधी और सहज राह दिखा दें तो हम क्या खो देंगे?
केवल कुछ पल!
क्या पायेंगे ?
शायद उस हैरान परेशान में भरी खिसियाहट के आक्रोश से भरे कुछ शब्द…
या फिर उसकी कृतज्ञता… शुभकामनाएं… शुभाषीश… सद्भाव!
जोखिम तो है!
मगर क्या ऐसा जोखिम उठाने योग्य नहीं?
ध्यान देने योग्य तथ्य है कि
तो क्या सच्चाइयों, अच्छाइयों और #भलाइयों_का_परित्याग करना ही उचित मान लिया जाये़?