अमरनाथ यात्रा में आज अभूतपूर्व और बहुत ही अधिक दुखदाई स्थिति निर्मित हुई है…. !
मृतकों को श्रद्धांजलि एवं उनके परिवारों से सहानुभूति!
यह समय शोक संवेदनाओं का तो है किंत… साथ-साथ यह विचारने का भी है प्रकृति या नियति या ईश्वर कुपित क्यों है? श्रद्धालु तीर्थ यात्रियों के ऐसे भीषण अंत को सौभाग्य तो कहीं से भी नहीं माना जा सकता और ना ही माना जाना चाहिए…!
आज जो यात्री कॉल कवलित हुए हैं.. इनमें से अनेक राजनीतिक चेतना से युक्त भी रहे होंगे..! (राजनैतिक चेतना का अर्थ सार्वजनिक हित-अहित के विचारों का धारक होना..) और यदि उनमें निहित स्वार्थी और पक्षपात पूर्ण राजनेताओं के साथ खड़े होने वाले दूषित राजनीतिक विचारधारा के लोग भी रहे हों तो भी ईश्वर की दृष्टि में वे दोषी हैं…! क्योंकि ईश्वर केवल और केवल न्याय करता है ! उस परमशक्ति के न्याय का आधार केवल व्यक्तिगत ही नहीं होता वरन स्थानीय सामूहिक या सामाजिक स्तर पर समग्र कर्मों के औसत के आधार पर ही वह उस स्थान विशेष पर न्यायपूर्ण कृपा या कोप करता है! यही इस दुखदाई दृश्य से भी परिलक्षित है!
ईशकोप झेल रहे क्षेत्र/राज्य/ राष्ट्र / संसार/ मानवसमाज के लोगों को अपने दैहिक एवं वैचारिक कर्मों पर व्यक्तिगत, सार्वजनिक व राजनैतिक स्तरों पर होते कर्मों पर पुनर्चिंतन की आवश्यकता है!
हालाकि भारत सर्वाधिक ईश्वरीय प्रकोप वाले शीर्ष 10 राष्ट्रों में सम्मिलित नहीं है किंतु शीर्ष ईशाशीषित 10 राष्ट्रों में भी सम्मिलित नहीं …!
वर्तमान शीर्ष ईशाशीषित तथा खुशहाल देश वे हैं जहां के लोगों को सर्वाधिक अनुशासित, न्यायी, विनयशील, क्षमाभावी, सद्भावी और सहिष्णू माना जाता है! वहां ईशकोप सबसे कम हैं और खुशहाली सबसे अधिक… इन शीर्षस्थ देशों में फिनलेंड और न्यूजीलैंड शीर्षस्थ हैं!
पहले भारत ही सबसे अधिक खुशहाल था किंतु कालांतर में दुष्ट राजनीतिज्ञों की सिंहासनासक्ति ने जनसाधारण को भ्रमित कर दुष्टता की ओर मोड़ना शुरु कर दिया… आंतरिक कूटनीतिक चालें चली जाने लगी… जिससे दिन पर दिन आदमी आदमी का दुश्मन होता चला गया… और यदि ऐसा ही चलता रहा तो महाविनाश सुनिश्चित है!
#भारत के जन-जन को चेतन्यता पर चिंतन कर चेतने की आवश्यकता है!