नोटबंदी एक धर्मयुद्ध (साप्ताहिक विचार- 2)
अपने ही कुलपुरुषों के विरुद्ध धर्मयुद्ध /अधिकार युद्ध/वर्चस्व युद्ध लड़ने
तत्पर फिर भ्रमित होते अर्जुन को
श्रीकृष्ण ने गीतोपदेश से प्रेरित कर
सदाचार को पुनर्प्रतिष्ठित कराया!
.
श्रीकृष्ण ने इतने विस्तृत कर्मयोग, ध्यान योग, ग्यान योग के वर्णन में
व्यर्थ समय और ऊर्जा नष्ट की!
वे अर्जुन से सगे संबंधियों को छोड़
उनकी सेना और समर्थकों का संहार करा सकते थे!
सगे सम्बन्धी सेना/समर्थक बिना,
बलहीन होकर शरणागत हो ही जाते!
..
मेरे श्रीकृष्ण की आलोचना करने से आप आक्रोशित हो रहे होंगे ना!
किन्तु भारत के सत्ताधारी दल विगत 70 वर्षों से यही करते आ रहे हैं!
वर्तमान धर्मरक्षक सत्ताधारी दल हो या पूर्व धर्मविहीन सत्ताधारी दल
सब जनहित नामक धर्मयुद्ध का उद्घोष कर
अधर्मियों पर कार्यवाही का प्रदर्शन करते आ रहे हैं!
ऐसे उद्घोष के समय भी वे अपने-अपने सगे को छोड़कर
शेष पर ही कार्यवाही होना सुनिश्चित करते आये हैं!
…
वर्तमान में अधर्म से अर्जित काले धन वालों के महलों में
दिखा-दिखाकर हैंडग्रेनेड्स और सुतली बम दोनों डाले जा रहे हैं
अपने सगे / समर्थक/अनुबंधितों के बाड़े में उछाले जा रहे
सभी हैंडग्रेनेड्स के पिन नहीं खींचे गये हैं,
आंगनों में सुतली बमों की आवाज गूंज रही है
दूर से देखती जनता इस दृश्य को देख गदगद है!!!
….
लेखक सकारात्मकता का प्रबल समर्थक होने के कारण
इन सब विसंगतियों के बाद भी अत्यंत प्रसन्न है!
क्योंकि मुट्ठीभर सगे संबंधियों को छोड़ शेष तो काले से सफेद हो रहे हैं!
और साथ ही इस तथ्य से कि
भारत का
“जन-जन जाग रहा है!”
“भारत जाग रहा है!!!”
-सत्यार्चन
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