इस समाचार को देखने, सुनने और सीएसपी साहब की विवेचना सुनने पढ़ने से एक बार फिर यह तथ्य सुस्थापित होता है कि सामाजिक ही नहीं वैधानिक दृष्टि में स्त्री जाति अपने हिताहित चिंतन में असमर्थ है! क्योंकि इसी समाचार से यह तथ्य स्पष्ट है कि देह व्यापार से धनार्जन के उद्देश्य से वे स्त्रियाँ अन्य शहरों से स्वयं ही ग्वालियर के होटल मयूर तक पहुंचा करती थीं और काम समाप्त कर वापस अपने घर लौट आती थीं..! इस प्रकरण में पुलिस द्वारा होटल से बरामद स्त्रियां पुलिस अधिकारी के कथन में भी दोषी ना समझी जाकर पीड़ित समझाई जा रहीं हैं!
क्यों?
केवल देह व्यापार में आने का ऑफर देने वाले पुरुषों को ही दोषी क्यों दिखाया जा रहा है? क्या ये स्त्रियां समाज पर कलंक नहीं? ये बेचारी कैसे हैं? और यदि ये बेचारी हैं तो पुरुष संरक्षित सामाजिक व्यवस्था की विरोधी क्यों है स्त्री?
उड़ीसा और मध्यप्रदेश वाली हनीट्रेपर्स भी तो स्त्रियां ही हैं ना? जिसने दैहिक संबंध स्थापित करने के बाद ब्लैकमेलिंग से राज्यों की सरकारों तक को वश में कर रखा था! वे तो प्रदेश में राजनैतिक ट्रेडिंग कर रही थीं… फिर भी वैधानिक दृष्टि में स्त्री बेचारी ही थी और रहेगी भी?
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