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बलात्कार और दयनीय मानसिकता के शिकार नीतिकार!

बलात्कार और दयनीय मानसिकता के शिकार नीतिकार!

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प्राकृतिक आवश्यकताओं और उनकी पूर्ति के संबंध में हमारे राष्ट्रीय नीतिकार सदियों से भ्रमित लगते हैं!
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अब इस ख़बर को ही ले लीजिए.. देश में बलात्कारों का राष्ट्रीय औसत 86 प्रतिदिन का है।
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सम्पूर्ण समस्या के सर्वांगीण आंकलन आधारित हल के स्थान पर उथले मंथन से निष्कर्ष निकाल एक सियार चिल्लाता है तो ढेरोंं सियार हुआने लगते हैं !
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जबकि अब बलात्कार जैसी विभीषिका का वास्तविक हल ढूंढ़ने के लिये बलात्कार के इतिहास पर जाना जरूरी हो गया है !
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सनकी राजाओं और युद्धरत या विजयोन्नमत्त सैनिकों को छोड़कर अन्य सामाजिक शांति कालिक बलात्कारों के प्रादुर्भाव तक जाना होगा !
यह कब हुआ ?
तत्कालीन समय की प्राकृतिक आवश्यकताओं की पूर्ति की सामाजिक स्वीकार्य व्यवस्था क्या और कैसी थीं..? उस दौर में ऐसे कौनसे सामाजिक और वैधानिक बदलाव हुए या हुए होंगे जिनके बाद बलात्कार जैसे घृणित अपराधों की आवृत्ति चिंताजनक रूप से बढ़ी ?
व्यक्तिगत शोधकर्ता की तरह हमने जो निष्कर्ष निकाले वे कितने उपयोगी हैं पता नहीं किंतु यह निश्चित है कि वे ऐसे उथले निष्कर्ष नहीं कि सारा दोष पोर्न दर्शन की
उपलब्धता पर डाल दिया जाये.. विशेषकर तब जब हमारी किशोरियों से लेकर प्रोढ़ायें तक अपने एकल या युगल कामभाव के अर्धनग्न आपत्ति जनक परिदृश्य स्वयं ही सार्वजनिक प्रदर्शन प्रस्तुत कर रही हों?
जब राजनैतिक कार्यकर्ता, कई राज्य सरकारें और उच्च न्यायालय तक, देह को आवरण में रखने के विरुद्ध तर्क-वितर्क कर नंगपन को राष्ट्रीय अनिवार्यता बनाने और ना बनने देने प्राणपण से जुटे हों ?
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वर्तमान नीतिकारों से मेरे कुछ प्रश्न हैं…
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क्या केवल पोर्न और अश्लील साहित्य ही उत्तेजक हैं ? या अर्धनग्न स्त्रियां / स्त्री पुरुष युगल का जीवंत सार्वजनिक कामभाव-दर्शन भी उत्तेजक हो सकता है?
जैसा विश्वामित्र जी के लिए हुआ था!
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दुनियां के जिन देशों में पोर्न और वयस्क फिल्मों पर सबसे कम रोक-टोक है और जहां सबसे अधिक उन 2नों विपरीत व्यवस्था वाले देशों में से किनमें बलात्कार अधिक पाये जाते हैं?
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मेरी जानकारी में सबसे अधिक पोर्न दर्शन (प्रतिशत जनसंख्या में) और दर्शन पर रोक-टोक वाले देशों में क्रमशः पाकिस्तान, भारत और बांग्लादेश हैं.. और शायद इन्हीं 3नों में बलात्कार सर्वाधिक भी!
“मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि निषेध सबसे बड़े प्रेरक हैं.”
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क्या नगरवधु, वैश्यावृत्ति और बाल-विवाहों के प्रचलन के दौर में बलात्कार और अविवाहित अवयस्क मातृत्व ना के बराबर नहीं थे?
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आपूर्ति आवश्यकता की तीक्ष्णता को हतोत्साहित और समाप्त तक भी करती है!
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एक प्रश्न नीति कारों के स्थान पर हंगामाबाजों से भी है कि
जब राजा इन्द्र के ऋषिप्रिया अहिल्या संग किये कृत्य पर धर्महित में‌ /धार्मिक मर्यादा हेतु उल्लेख वर्जित है तो आज के राजाओं के यौनशोषण पर मौन की प्रेरणा क्यों नहीं?
विशेषकर तब जब ऐसे आरोप का आरोपी आंशिक ही और आवेदक परी तरह मिटा दिया जाता हो?
क्या किसी ने कभी किसी सत्ताधारी राजनीतिज्ञ को दुष्कर्म की सजा होते देखी है?
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और ये 2 प्रश्न सभी से ..
क्या पूरे विश्व भर के लिए एक समान यौन मानदंड उचित माने जा सकते हैं जबकि अलग भू-भागों की भौगोलिक, सांस्कृतिक , सामाजिक और मौसमी भिन्नताएं यौन आवश्यकता को तार्किक /वैज्ञानिक रूप से गहरे प्रभावित करने वाली हों ?
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वैधानिक व्यवस्थाओं का आधार कितना भावनात्मक और कितना तार्किक /वैज्ञानिक होना उचित है?
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लीजिए अब यह समाचार देखिए…
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बंगाल से महाराष्ट्र तक दुष्कर्म का दंश और कारण Porn… भारत में इसे लेकर कितने कड़े हैं कानून
http://dhunt.in/WcK1Q

By आज तक via Dailyhunt

Sathyarchan VK Khare
Author: Sathyarchan VK Khare

यथार्थ ही अभीष्ट हो स्वीकार विरुद्ध हो भले..!

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