दोस्तो,
क्या आपको पता है कि
“शादी विवाह, गृहप्रवेश, जन्मोत्सव आदि के समय उपहार लेकर जाने की परम्परा के पीछे कौनसा उद्देश्य छुपा है ?”
“उद्देश्य है कि
” हर एक व्यक्ति ऐसे अवसर अपनी सामर्थ्य की सीमा तक जाकर अपनी सारी पूंजी खर्च चुका होता है, ऐसे में उस अपने की, उसका आत्मसम्मान आहत किये बिना, उल्लासपूर्वक मदद
करना!
“किन्तु आज के समय में तो, हर छोटी बड़ी बीमारी के इलाज में भी, इन छोटे बड़े हर्षोत्सवों जैसा ही, खर्च करना पड़ता है!”
ऐसे में क्या एक नई परम्परा के प्रचलन का विचार नहीं किया जाना चाहिये!
“शादी विवाह में अगर
हम किसी को आर्थिक मदद के लिए लिफाफा देते हैं तो बीमार को देखने जाते समय क्यों नहीँ दे सकते! जबकि बीमारी में मदद की आवश्यकता अधिक होती है!
कृपया चिन्तन अवश्य करें,….
शादी में तो गैर जरूरी दिखावे के खर्च बचाये जा सकते है पर बीमारी में जरूरी दवाइयाँ और इलाज तो जरूरी है !
ऐसे लिफ़ाफ़े लेकर जाने की शुरुआत इस तरह के शब्दों के साथ की जा सकती है-
“यह हमारे कुल की परम्परा है, कृपया स्वीकार कीजिये”
“नया विचार नई ऊर्जा”
प्रसारक
#सत्यार्चन
(सद्भाव के समर्थकों से पुनर्प्रसार की प्रार्थना है, अपेक्षित भी !)
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