शबाब पर है आज राजनैतिक शतरंज…
जो शतरंज के खेल को थोड़ा बहुत समझते हैं वो जानते हैं कि शतरंज दो राजाओं के बीच युद्ध का प्रतीकात्मक खेल है…
इसमें दो खिलाड़ी होते हैं एक के मोहरे सफेद और दूसरे के काले होते हैं…
हालाकि मोहरों के काले या सफेद दिखाई देने से खिलाड़ी के युध्ध कौशल की स्तरीयता प्रभावित नहीं होती…
विश्वस्तरीय शतरंज प्रतियोगिताओं में खिलाड़ियों को मौन रहकर सज्जनता की सीमा में रहकर ही खेलना होता हैं…
किंतु जैसे-जैसे प्रतियोगिता निचले स्तरों की ओर जायें चीख चिल्लाहट तक की स्थिति बनते जाती है…
ठीक ऐसे ही राजनीति के स्तर हैं…
उच्च स्तरीय शतरंज में दोनों पक्षों के 2-4 मोहरों की मारकाट में ही हार जीत का निर्णय हो जाता है…
जबकि निचले स्तरों पर सामने वाले के बड़े मोहरे को मारने के लिये अपने छोटे-छोटे मोहरों की बलि भी हँसते-हँसते दे दी जाती है…
निम्न स्तरीय शतरंज के खेल में हार जीत से ज्यादह जोर बड़बोलेपन और प्रतिद्वंद्वी को खिझाने, सताने और नीचा दिखाने पर होता है…
आपमें से कुछ लोगों ने शायद राजे महाराजों को इंसानी मोहरों के साथ शतरंज खेलते फिल्मों में देखा होगा…
जिन्होंने ऐसी इंसानी मोहरों वाली शतरंज नहीं देखी होगी वे सभी भारतीय अब
जीवंत शतरंज का खेल देख पा रहे हैं…
जिसमें छोटे बड़े सभी पैदल सैनिक, ऊँट सवार, घुड़सवार, हाथीसवार, रानी/सेनापति/ बज़ीर सभी मोहरे इंसान हैं खिलाड़ी खुद बादशाह/ राजा बने हुए हैं …
काले मोहरों में भी और सफेद मोहरे भी…
खेल का स्तर भी वही ऊपर से नीचे की ओर गिरता हुआ…
बस एक बहुत बड़ा अंतर है कि गली स्तर का बादशाह मोहल्ला स्तर वाले खिलाड़ी के लिये पैदल, ऊँट या घोड़ा ही है…
इसी नियम से हर ऊपरी स्तर वाले खिलाड़ी के लिये निचले स्तर के खिलाड़ी की औकात है…
हर खिलाड़ी अपने छोटे-मोटे मोहरे पैदल, ऊँट, घोड़ा, हाथी और दूसरी रानी की ठीकठाक तैयारी हो तो
रानी तक की कुर्बानी देकर जीतने की कोशिश करने में जरा नहीं हिचक रहा …
फिर चाहे ऐसी शतरंज केरल में खेली जा हो रही हो या काश्मीर में या कासगंज में….