“हवन?” सबके हित में.. सबके साथ.. सबका हित सबके हाथ…! (2)
म. प्र. शाशन में अध्यात्म मंत्री माननीय ऊषा ठाकुर जी को विगत दिनों मेसेंजर पर प्रेषित पत्र…
साधारण मानव का तो स्वभाव ही आलोचक का है..।
ऐसी आलोचनायें अनसुनी अनदेखी के योग्य हैं…
विशेषकर तब जब जनसाधारण के स्वास्थ्य तथा जीवन का जोखिम सामने हो…
अन्य मार्ग अवरुद्ध जितने संकीर्ण हों… तो ऐसे मार्ग का अनुसरण जो सर्वथा ‘हानिरहित’ हो, उससे अधिक उपयुक्त और क्या होगा ?
‘हवन’ से धरातल तथा वायुमंडल, दोनों में उपस्थित, जीव-जंतु, रोगाणु , कीटाणु, विषाणु (क्षुद्र जीव) आदि या तो यज्ञशाला से दूर पलायन कर जाते हैं या फिर नष्ट हो जाते हैं..! यहाँ तक कि मनुष्य की वैचारिक शुद्धि तक होती है..
देव, गंधर्व, यक्ष आदि जिन गणों से हम परिचित हैं वे सभी
मनुष्यों के ही वर्गीकरण हैं…!
हर मानव को धरती पर ईशप्रतिनिधि के रूप में ‘ईश संरचनाओं’ के रक्षण-संरक्षण हेतु ही भेजा गया है… प्रकृति के रखवाले हैं हम… मालिक नहीं!
इस प्रकृति की सही सही देखभाल… साज सम्हाल ही हमारा प्रथम कर्तव्य है… और नष्ट करना पाप!
यदि निरपेक्ष हो सद्भावपूर्ण सार्वजनिक हित को समर्पित ‘हवन’ और अन्य आस्थाओं का भी अनुपालन हो सके… तो निश्चय ही आस्तिक जन को मनोबल संबर्धन का लाभ होना तो सुनिश्चित ही है…!
मनोविज्ञान इसे आत्मसम्मोहन जनित आत्मबल, चिकित्सक ‘प्लेसिडो इफेक्ट’ और प्रेरक आत्मविश्वास में बृद्धि कहते हैं…
हमारी 60-70% जनता आस्थावान है.. इसीलिये उनके मनोबल को बनाये रखने… या बढ़ाने की दिशा में.. सभी अध्यात्म मंत्रालयों के अधीन, ‘हवन’, अग्निहोत्र, ‘यज्ञ’, लोभान की धूनी आदि को वृहदाकार स्वरूप में प्रयोग किया जाना चाहिए!
प्रति 5000 मानव रहवासियों के लिये, 101 किलोग्राम हविष्य की यज्ञाहुति दी जानी चाहिये!
मुस्लिम वस्तियों में सरकार फकीरों को प्रोत्साहित कर प्रत्येक घर के कौने-कौने तक लोभान की धूनी दिलवाने का कार्य भी कराये तो, निश्चय ही, स्वास्थ्य लाभ कई गुना तक बढ़ जायेगा !
मेरे सार्वजनिक आलेख/ उद्घोष के सूत्र-
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http://lekhanhindustani.com/2021/04/30/%e0%a4%b9%e0%a4%b5%e0%a4%a8-%e0%a4%b8%e0%a4%ac%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%b9%e0%a4%bf%e0%a4%a4-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%b8%e0%a4%ac%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%b8%e0%a4%be%e0%a4%a5/
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