खुशी की उन्नत फसल उगाने के लिए
#कर्तव्यों के बीज बोने से पहले भूमि को;
#दुर्भावना, #आशंका आदि
#नकारात्मक_भावों की
खरपतवार से मुक्त कर
स्वच्छ करना होता है..
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फिर #सदाचार और #आशा का उर्वरक मिलाकर
भूमि को उर्वरा बनाना होता है..
और फिर कर्तव्यों के #निर्विकार
बीज बोए जाते हैं तो अक्सर..
#अधिकार, #पारितोषिक और #प्रतिष्ठा के
फल-फूलों से लदे
खुशी के पौधे
पल्लवित हो
लहलहाने लगते हैं!
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#ऐसी_प्राप्ति_के_लिए
एक #शिक्षित, #अशिक्षित,
#संपन्न या #विपन्न
खेतिहर किसान की तरह,
विभिन्न श्रोतों से,
संबंधित #जानकारियां_जुटाकर,
योग्य बनना होता है!
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फिर अच्छे श्रमिक की तरह
#निरंतर_मेहनत करना होती है…
और पौधों के अंकुरण से
लेकर पल्लवन तक
भरपूर #धैर्य और #सम्पूर्ण_समर्पण से
फसल की सिंचाई,
निंदाई, देखभाल,
चौकीदारी, करनी होती है..
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इतना करने के बाद,
हर किसी को,
उसके जीवन में,
#खुशियों के #भरेपूरे_बाग_की,
#सहज_प्राप्ति हो जाती है!
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