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Bihar: 15 acquitted in Senari massacre case

निचली हो कि ऊंची… कोर्ट ही कोर्ट को कटघरे में खड़ा करने का अधिकार रखती है… कोई आम आदमी चलते फिरते यूं ही बोल दे … लिखे… कि अमुक कोर्ट का अमुक निर्णय अनुचित है.. तो कोर्ट की अवमानना का प्रकरण बन जायेगा… किन्तु एक कोर्ट दूसरे कोर्ट के निर्णय को पूरी तरह बदलकर सभी आरोपियों को बरी कर दे तो वह बड़ी कोर्ट कि बड़ा निर्णय बनकर सम्माननीय तो बन जाता है … किन्तु निचली कोर्ट तब भी सक्षम और सम्माननीय ही बनी रहती है… इसी तरह का सेनारी प्रकरण है… 1999 में 34 लोगों की जघन्य हत्या हुई… निचली कोर्ट ने 15 आरोपियों को दोषी पाया, 11 को सजाये मौत और 4 को उम्रकैद की सजा सुनाई… किन्तु उच्च न्यायालय ने सभी को निर्दोष मानकर मुक्त करने का निर्णय दिया!

इन 2 कोर्ट में से 1 तो दोषपूर्ण निर्णय से युक्त है.. या तो 11 +4 निर्दोषों के जीवन से खिलवाड़ करने वाली निचली कोर्ट या 11+4 जघन्य अपराधियों को मुक्त करने वाली ऊपरी कोर्ट… ना तो 15 निर्दोषों को अपराधी ठहराना छोटी बात है ना ही 15 अपराधियों को निर्दोषिता का सर्टिफिकेट देना!

इतनी बड़ी भूल/गलती के बाद भी माननीय न्यायालय आलोचना से मुक्त हैं… रहेंगे क्योंकि न्यायालय सर्वोपरि हैं…

अब यदि आने वाले कल में तीसरी सर्वोच्च अदालत कुछ को बरी और कुछ को सजा का निर्णय सुना दे तो भी ना तो आश्चर्य का विषय होगा ना ही आलोचना का …

क्यों ?

इन 15 जैसे अनेक निर्दोषों/ अपराधियों के साध साथ सम्पूर्ण व्यवस्था को सतही तरह से सम्पंन्न कर जनसाधारण की सुरक्षा या भावनाओं में से एक से खेलने वालों पर जबाबदेही का दायित्व क्यों नहीं?

सर्वोपरि का आचरण भी सर्वोपरि जैसा क्यों ना हो?

सर्वोपरि आसन पर विराजमान के त्रुटि पूर्ण दायित्व निर्वहन पर दंड का विधान क्यों नहीं?

होना चाहिए या नहीं?

देखिये संबंधित समाचार..।

सेनारी नरसंहार में 15 आरोपी को पटना हाईकोर्ट ने किया बरी निचली अदालत ने 38 अभियुक्त में से 15 को किया था दोषी करार 18 मार्च 1999 में बिहार के जहानाबाद जिले ( वर्तमान में अरवल ) में हुए सेनारी नरसंहार के मामले में आज पटना हाईकोर्ट ने 38 में से 15 आरोपियों को बरी […]

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Author: traffictail

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