क्या हमारी अवधारणा का आधार खोखला नहीं है?

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क्या हमारी अवधारणा का आधार खोखला नहीं है?

आज के दौर में एक नया रोचक व्यापार विकसित हुआ है ! जिसे “असत समाचार विश्लेषण” (Fake News Analysis) पुकारा जाता है!

विचारणीय है कि असत प्रसार इतना बढ़ चुका होगा तभी तो “#असत_समाचार_विश्लेषण” एक व्यवसाय बन गया !

बात इतनी ही नहीं है इससे भी आगे निकल चुकी है..! कुछेक “असत समाचार विश्लेषकों” पर प्रशासनिक या तथाकथित जनचेतन संघों की कार्रवाई भी होते दिखने लगी है ! स्पष्ट है कि कुछ लोग झूठतंत के समर्थन में हैं और कुछ विरोध में !

मैं झूठतंत्र के प्रसार का यहां एक कम विवादास्पद उदाहरण प्रस्तुत कर रहा हूं जो 2 उच्च प्रशासनिक अधिकारियों के व्यक्तिगत जीवन से संबंधित है…! इसका सत-असत विश्लेषण भारत के प्रतिष्ठित अखबार दैनिक भास्कर ने किया है ! प्रश्न यह है कि ऐसे ही किसी भी प्रतिष्ठित व्यक्ति के संबंध में ऐसी झूठी अफवाहें फैलाकर किसे क्या लाभ होने वाला है ? इस प्रकरण में यह लाभ संभवतः कोचिंग संस्थान उठाना चाहते हैं या फिर कोचिंग संस्थानों के विरोधी.. कहना कठिन है ! किन्तु ऐसे अनेक विवादास्पद समाचार प्रतिदिन प्रसारित होते रहते हैं जिनके लाभार्थी स्पष्ट परिलक्षित होते हैं! हम आप आम जन हमारे मीडिया में आये समाचारों पर ही अपनी अवधारणा या जीवन की योजना बनाते हैं! जब ये मीडिया ही विश्वसनीय नहीं हैं तो हमारी अवधारणाएं, योजनायें और नीतियां तो खोखले आधार वाली हो गई ना ?

लीजिए देखिये …

महिला IAS की झूठी कहानी की हकीकत…: बोलीं- मेरे पिता अफसर, मां बिजनेस वुमन…ये कैसे हो सकता है कि उनके पास डोसा खाने के पैसे न हों
https://dainik-b.in/wi1Pgrbh4xb

अच्छा या बुरा जैसा लगा बतायें ... अच्छाई को प्रोत्साहन मिलेगा ... बुराई दूर की जा सकेगी...

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