आया सतयुग! जाता कलयुग …
शायद बाबा जय गुरुदेव जी से भी पहले से मैं कहते आ रहा हूँ, कि सतयुग आ रहा है….
किन्तु अब तो आ भी चुका है!
पूर्ण सत्यनिष्ठ व्यक्तियों का सतयुग प्रवेश हो चुका है किन्तु आसुरी शक्तियों की समाप्ति अभी शेष है… असत, आडंबर, अव्यवहारिक आचरण करने वाले मनुष्य के रूप में हिंसक दानवीय शक्तियाँ आपसी विध्वंस में समाप्त होने जा रही हैें… उनके विध्वंशक युध्द की ज्वाला मैं असत के अहिंसक समर्थक भी नष्ट हो जाने हैं… केवल सन्मार्गी और अहिंसक मुट्ठी भर लोग ही अगले युग में (सतयुग में) प्रवेश पाने वाले हैं… शेष निकट भविष्य में दानवों के आपसी युद्ध से, आने वाले प्रलय में समाप्त हो जायेंगे!
अपना कथन प्रमाणित करने तर्क रख रहा हूँ… सहमत हों तो मेरे साथ आइये … अन्यथा विरोध कीजिये –
यदि आपकी आयु 50 वर्ष या उससे अधिक नहीं है तो 50 बर्ष से अधिक के उतने व्यक्तियों से कुछ प्रश्न पूछिये जितनों के मत जानकर आप अपना मंतव्य बना सकें!
और यदि आप स्वयं 50 वर्ष से अधिक की आयु के हैं वही प्रश्न आपसे भी हैं –
1-
आप अपनी स्मृति में पीछे की ओर, 5 चरणों में जाकर, स्वयं निष्कर्ष निकालें.
आइये अपने-अपने बचपन (5-10 वर्ष आयु) के मित्रों के, और उनके माता-पिता के, समाज का मूल्यांकन करें / तत्कालीन सामाजिक परिवेश का आँकलन कीजिये!,
कितना मानवीय थे वे या कितने आडंबरों को ओढ़े हुए थे? वे सत्य से कितना पास या दूर थे?
2-
उपरोक्त प्रक्रिया को अपनी किशोरावस्था (13-17 की आयु) के साथियों के साथ याद कर दोहराइये.
3-
युवावस्था (19-30 की आयु) के लिये दोहराइये.
4-
मध्यावस्था (35-40 की आयु) के लिये देखिये, और अपने बच्चों के बचपन के साथियों को भी इनमें सम्मिलित कीजिये!
5-
वर्तमान में अपने माता पिता यदि हों तो उनके, आपके स्वयं के और आपके बच्चों के आज के परिवेश का आंकलन कीजिये !
क्या अलग-अलग आयु-वर्गों की जीवनचर्या में, 40-50 वर्ष पहले की तुलना में, क्रमोत्तर सकारात्मक परिवर्तन परिलक्षित नहीं हो रहे?
जैसे – जीवों के प्रति दयाभाव, वृद्धों और बीमारों के प्रति सेवाभाव, पीड़ित की सहायता की इच्छा होना, सकारात्मक विचारों के समर्थन में संगठित होना.
यदि परिलक्षित हैं तो स्पष्ट है कि कि हम सकार यानी सत्य की ओर चल पड़े हैं!
इसके विपरीत यदि आपकी मान्यताओं के अनुसार कुछ नकारात्मक आंकलन भी देख पा रहे होंगे जैसे- स्त्री-पुरुष संबंधों में साथी के प्रति सत्यनिष्ठ समर्पण में गिरावट, अन्य रिश्तों में घटता आपसी स्नेह, धार्मिक अनुष्ठानों से अधिक सामाजिक हितों के कार्यों में सक्रियता…. तो पिछले सतयुग के सामाजिक परिवेश में भी ऐसा ही नहीं था क्या? वर्तमान कलयुग के सद्जन ही अगले आने वाले सतयुग के ‘आदि मानव’ होंगे….
अब तक की मानवीय प्रगति से अर्जित सभी तरह की मुद्राओं के भंडार, मशीनरी, कल कारखाने, वैभवशाली भवन, मुद्राओं के, बहुमूल्य भातुओं के, भोजन के, वस्त्रों के अंबार / भंडार सभी जल-प्लावन में नष्ट …. पहने हुए भी सब व्यर्थ हो जाने हैं … कुछ शेष नहीं बचेगा…. शरीर पर कोई आभूषण कोई वस्त्र भी नहीं….. या शायद अंतर वस्त्र ही बचें …. यही सतयुग में प्रवेश के प्रयास की पात्रता होगी…. केवल तन और स्वस्थ मन की दौलत ही साथ बचेगी…. सब या तो छिन जायेगा या फिर त्यागना होगा…
सारे भेद खत्म हो जाने हैं… कोई जाति नहीं … कोई धर्म नहीं… केवल बोध ही मानदंड बचेगा… कोई रंग भेद नहीं कोई नश्लभेद नहीं…. केवल सु-बुद्धों का ही मान होगा… कोई अछूत नहीं!
<strong> फिर से पुरुष और स्त्री यानी सामर्थ्य और समर्पण, शिव और शक्ति मिलकर नये युग का शुभारंभ करेंगे … सतयुग का आगमन हो चुका है…. कलयुग के निष्कासन के लिये, आने वाली प्रलय, की आहट भी सुनाई देने लगी है… तैयारी कीजिये…
आज से…. अब से…. अभी से सत्य का अनुसरण प्रारंभ कीजिये… . यह मेरी प्रार्थना है …
क्योंकि नई दुनियाँ के निर्माण में आप सब सफल रहने वालों का सहयोग भी आवश्यक होगा…. </strong>
हरि ओम्
….. सुबुद्ध
#सत्यार्चन