क्या पत्रकारिताहीन देश हैं हम

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क्या पत्रकारिताहीन देश हैं हम

मेरा सवाल है भारत के सभी मीडिया हाउसेस से कि-

राम रहीम जी, आसाराम जी के दोषी प्रमाणित होने से पहले आपके जैसे मीडिया हाउस क्या कर रहे थे??? क्या आप सब मीडिया हाउस दोषी नहीं हैं…. भ्रमित देश को भ्रम में बनाये रखने के … भ्रम को बढ़ावा देने के … भ्रम का महिमा मंडन करने के….. ऐसा हो ही नहीं सकता कि समूचा मीडिया अब तक अंजान हो …. उन सच्चे लोगों से जो नि:स्वार्थ समर्पित हैं समाज के लिये… देश के लिये…. मगर आपका इंट्रेस्ट केवल गरमागर्म खबरों में है…. ऐसा लगता है मूढ़ जनों की तरह ही आप सब भी,  विशिष्ट विचारकों के… दलों के …. समूहों के संस्थाओं के प्रति … समर्थन या विरोध का पूर्वनिर्धारण कर …. योजना पूर्वक, समर्थन या विरोधी केम्पेन चलाते रहते हैं…  

मैं मेरे कथन को नीचे लिखे तथ्यों से सिद्ध करना चाहूंगा-

2013 से अब तक सत्ताधारी दल को छोड़ शेष सभी नेताओं के वाणी / विचार अचानक…. एकदम से …. इतने पंगु कैसे हो गये कि सभी के वक्तव्य केवल मखौल के योग्य ही बचे हैं ….. सारे नेता एकसाथ मतिभ्रम का शिकार तो नहीं हो सकते ना! तब से किसी भी विपक्षी का, कोई भी वक्तव्य उल्लेखनीय / सम्माननीय नहीं रहा ….

ऐसे ही  रामरहीम, आसाराम, नित्यानंद जैसे दरबारों में उनके दोषी प्रमाणित होने से पहले कभी भी…. कुछ भी…. प्रश्न उठाने जैसा नहीं दिखता आप लोगों को…. किस बात डर है …. ?  मिलने वाले चंदे के कम होने का …. या गिरने वाली टी आर पी का… या गौरी लंकेश की तरह मारे जाने का…?  टी आर पी का डर है तो आपकी आंकलन क्षमता ठीक नहीं है…. शेष कोई भी डर है तो तो मुझे दुख है कि जिस देश का गौरवांवित वासी हूँ उस देश में एक भी मीडिया हाउस “पत्रकारिता धर्म” के निर्वाह में सक्षम नहीं है…. 

जनता को दोष देकर अपने कुकृत्यों को अधिक दिन ढँका नहीं रख पाओगे ….. जनता जाग रही है… वह सोशल मीडिया प्रस्तुतियों में से झूठ और सच अलग-अलग करना सीख रही है…   शीघ्र ही जनता पारंगत भी हो जायेगी …. तब आप सब बगुलों की दुकानों पर कौए उड़ेंगे!  चेत जाओ! ….. जाग जाओ !!……… सत्य को सबल करने साहसपूर्वक सत्य के साथ खड़े होना शुरु तो करो ….   व्यक्ति हो या संस्थान-

केवल सत्य के साथ ही स्थायी सफलता संभव है!”

12 comments

  1. 2013 से अबतक लिखकर सारे लेखनी पर प्रश्नचिन्ह लगा लिए।
    समालोचक की भूमिका में आएं , सत्ता जो करती है उसका दायित्व है जो नहीं करती उसे देखना हमसब का कर्तव्य है।

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    1. प्रिंट मीडिया में योग्य साहित्यिक लोग होते थे इलेक्ट्रोनिक मीडिया उछलकूद कैट वाक ,फैशन परेड जैसे कलाकारों का मंच बन गया है गंभीरता या खोजी पत्रकारिता के मूल गुण इनके नहीं है इनका पत्रकारिता का स्तर पीत पत्रकारिता से भी नीचे का होगया है जिसे मैं पिंक पत्रकारिता के नाम से संबोधित करना चाहूंगा

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      1. प्रिंट , डिजिटल या इलेक्ट्रानिक मीडिया की
        अपनी- अपनी सीमायें
        अपनी-अपनी विशेषतायें…
        और अपनी-अपनी विषमतायें हैं…
        पर एक बुराई सबमें है…
        बिकाऊ ईमान …
        यह भर ना होता …
        समाज सुधर गया होता!
        भारत सचमुच का स्वर्ग होता!!!!

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    2. इस कर्तव्य को बेचकर हवेलियां बनवाने की जगह हवाइयां उड़वाने की ठान लें … अगर हम गोली से नहीं उड़ा दिये जायेंगे …तो आसमान में ही बिठाये जायेंगे….!

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        1. मुझे नहीं लगता कि गाँधी जी, इंदिरा जी और राजीव जी को देश पत्रकार के रूप में जानता रहा हो…. जहाँ तक उनकी हत्या का प्रश्न है …. अपरिपक्व राजनैतिक विचारधारा जनित विद्वेश ही कारण रहा … अगले हिस्से में गाँधी जी पर मेरे एक लेख का लिंक भेज रहा हूँ….

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        2. आप खोजी पत्रकार है गोली का डर नहीं है गौरी लंकेश की तरह तो
          ” मानसी सोनी ” पर एक सटीक आलेख लिखें , अगर सटीक हुआ तो विश्व के 144 न्यूज़ पेपर में छप जाएगी। धन्यबाद

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        3. दिये गये विषयों पर लिखने का शौक होता तो जावेद अख्तर साहब जैसे मुम्बई में रह रहा होता…. और जहाँ तक छपवाने की बात है तो बता दूं कि मेरे शहर का ऐसा कोई प्रतिष्ठित दैनिक प्रकाशन शेष नहीं है जिसने विगत 10 वर्षों में मुझसे मेरे आलेखों की माँग ना की हो … और ना ही कोई ऐसा प्रकाशन है जो मुझसे मेरे आलेख पाने में सफल रहा हो… दो -चार पत्रकार मेरे आलेखों के शब्दों में हेरफेर कर अपने नाम से छाप अवार्ड लेकर बड़े पत्रकार जरूर कहलाने लगे….

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