हीरों की खदान है संसार..

संसार सब तरह के लोगों का है जैसे कोयले / हीरों की खदान…. लोग खोदते रहते हैं .. वर्षों तक भी …
कुछ को हीरे वाला पत्थर (अनगढ़ हीरा) पहले दिन से ही पहचान में आने लगता है और मिल भी जाता है
कुछ को पहले सप्ताह में ..


कुछ को पहले माह तो कुछ को पहले साल ..
मगर कुछ लोग कभ भी नहीं पाते …
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क्यों नहीं पाते ?
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क्योंकि ठीक से पहचान नहीं कर पाते..
उनके अधिकांश चयनित और एकत्रित किए पत्थर लैब में साधारण पत्थर ही प्रमाणित होते हैं.. क्योंकि वे चयन के मापदंडों का कड़ाई से पालन नहीं कर पाते…
गलत चुनते हैं…
बार बार गलत चुनते हैं …
और फिर निराश होकर चल देते हैं ..
असल में हीरे का मिलना सबके भाग्य में होता ही नहीं…
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कई बार तो यह भी होता है कि एक खनिक निराश होकर छोड़कर चल दिया तब दूसरा आया और उसने पिछले के छोड़े हुए में से ही वह बहुमूल्य हीरा पा लिया जो पिछले ने पत्थर समझकर छोड़ दिया था…
जिसने छोड़ा उसका अनुभव अधिकांश हीरा संभावित पत्थरों का टेस्टिंग में पत्थर ही निकलने का था … इसीलिए उसने वे हीरे वाले पत्थर भी नहीं उठाये जो हीरे थे…
अगले की पहचान अधिक अच्छी थी..
नवागत था तो उत्साह भी मरा नहीं था
इसीलिए
अगले ने, पिछले के छोड़े हुए से ही वो बहुमूल्य हीरा पा लिया..
जबकि पिछले ने श्रम, धन और समय खर्च करके भी गंवा दिया…
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“आंकलन श्रेष्ठ हो तो चयन श्रेष्ठ होंगे और चयन श्रेष्ठ हुए तो प्राप्तियां भी श्रेष्ठ ही होंगी !”

#सत्यार्चन

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