हम हिंदी हैं शर्मिंदा?

द्वारा प्रकाशित किया गया

हम हिंदी हैं शर्मिंदा?

 रूसी, फ्रांसीसी, जर्मन राष्ट्राध्यक्षों तक को उनकी अपनी भाषा में बात करते हुए जरा सी शर्म नहीं आती कि उन्हें अंग्रेजी
ठीक से नहीं आती.... मगर हम हिंदी जन ... 
हिंदी भाषी होने पर हम शर्मिंदा क्यों हो जाते हैं? 
अधिकांश अंग्रेजी ना जानने वाले या सीमित अंग्रेजी का ज्ञान रखने वाले भारतीय 
अपनी अंग्रेज अज्ञानता पर शर्मिंदा होते रहते हैं... 
मगर क्यों? 
कोई तो कारण होगा / होंगे हमारी इस सोच के पीछे....
 कारण हैं... 
पहला कारण है 
पिछली सदियों में भ्रष्टनीति सक्षम अंग्रेजों का सशक्त होना 
जिससे आधी दुनियां पर उनका राज था
जहाँ-जहाँ अंग्रेजों का राज था वहाँ की राज काज की भाषा अंग्रेजी होने से 
अंग्रेजी स्वतः ही अंतर्राष्ट्रीय भाषा बन बैठी...
दूसरे भारत में दर्जन भर से अधिक स्थानीय भाषाओं का होना..
अंग्रेजी शासन काल में अंग्रेजी के राज काज की भाषा होने से अंग्रेज ही शिक्षित, समृद्ध, सबल, सभ्य और साहब माने जाते थे 
तब प्रशासक या उसका मातहत होना हर युवा का सपना रहा होगा...
प्रशासक या मातहत कुछ भी होने के लिये अंग्रेजी ठीक से आना चाहिये थी... 
अंग्रेजी सीखना और सरकारी नौकरी पाकर अंग्रेजों के साथ काम करते हुए उन्हीं के तौर तरीके सीख 
अंग्रेजी सीखे हुए भारतीय अंग्रेजों से भी बड़े अंग्रेजी के भक्त हो गये... 
अंग्रेजों के लिये अंग्रेजी ना जानने वाले भारतीय गुलाम थे... निकृष्ट थे... ऐसा ही उनके साथ काम करने वाले 
भारतीय अंग्रेजों को भी अंग्रेजों को प्रसन्न करने उनकी चापलूसी में करना होता था...
धीरे-धीरे दोनों तरह के भारतीयों ने इस स्थिति को ही अपनी नियति मान तदनुसार आचरण करना शुरु कर लिया
 तभी से अंग्रेजी जानने और ना जानने वालों के बीच साहब और गुलाम का सा रिश्ता बना 
जिसे आज के भी भारतीय अंग्रेज परंपरा के रूप में निभाते आ रहे हैं...
हम राजनैतिक स्वतंत्र तो हो गये किन्तु वैचारिक गुलाम थे और हैं...
ना हमने हमारे गुलामी पूर्व के समृद्ध सांस्कृतिक, बौद्धिक, राजनैतिक, स्तर अनुरूप होने के लिये 
कोई संस्कार समिति बनाई ना शिक्षा समिति ना ही सौहार्द समिति...
भारत की स्वतंत्रता से केवल इतना प्राप्त हुआ कि पहले बहुत सारे विदेशी मिलकर, भोले भाले भारत को लूटकर,
भारत का धन बाहर ले जा रहे थे और आज बहुत सारे भारतीय...
भोले भाले भारतीय कभी कुछ समझ ना सकें 
इसी लिये भारतीय अंग्रेजों द्वारा संचालित स्वतंत्र भारत के प्रशासक 
अंग्रेजों की देन अंग्रेजी, अंग्रेजियत और भ्रष्टनीति का मुख्य अंग "बांटो और बादशाह बने रहो" को अंग्रेजों से भी 
बढ़ चढ़कर अपनाये चले आ रहे हैं... 
जिसमें फंसा रहकर भारत का नागरिक कभी प्राचीन भारत की समृद्धि के मूल अवयव 
हमारी समृद्ध संस्कृति और सौहार्द की ओर देखे, सोचे, समझे या माँगने ही ना लगे!

 

2 comments

अच्छा या बुरा जैसा लगा बतायें ... अच्छाई को प्रोत्साहन मिलेगा ... बुराई दूर की जा सकेगी...

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s