दर्द से कराहते
डरते हों जब खुद
होते हुए हलाक..
तब
कोई चीखे
बतलाये
बूचड़खाने के हालात…
तो लगता है
अभी तक
दहशत नहीं जीती
बाकी हैं
बंद किए जाने
सुराख
उम्मीद की किरण के
मत हो निराश
पाले रख अहसास
बाकी हैं चंद चिराग
जो
ढूढ़कर सुराख
आयेंगे कल
मुझतक
लेकर उजास..
