सतदर्शन 1

द्वारा प्रकाशित किया गया

                        सतदर्शन 1

स्थापित ही सदैव सत्य हो यह आवश्यक नहीं.. और वैश्विक स्तर पर भी शोधित या उत्खनित नवाचार का अस्वीकार भी नया नहीं है…


सुकरात को विषपान विवश किये जाने की घटना से कौन परिचित नहीं?
सुकरात को मृत्यु दंड दिये जाने का प्रमुख कारण ही राजा सहित बहुमत के मन में स्थापित तत्कालीन मान्यता रूपी महाभ्रम  था कि..
पृथ्वी ही ब्रम्हांड का केन्द्र है. सूर्य, चंद्रमा सहित समस्त तारामंडल पृथ्वी के चारों ओर घूमते हैं…!


किन्तु सुकरात के तार्किक दर्शन में यह भ्रम कैसे भी फिट नहीं बैठ पा रहा था…!
सुकरात का दर्शन कह रहा था कि पृथ्वी ही अपनी धुरी पर घूमती है… ना कि समस्त तारा मंडल… किंतु तब तक.. कोई भी.. सुकरात के इस सच को सुनने तैयार नहीं था… सुकरात तर्क देते रहे… विरोध सहते रहे… आखिर सुकरात की बदनामी फैलते फैलते राजा तक भी जा पहुंची…!


  राजा ने सुकरात को बुलवाया उनके तथ्य और तर्क सुने.. सभासदों से मंत्रणा की और…  सुकरात को पृथ्वी के घूमने वाले देवद्रोही तथ्य के (दुष्ट) प्रचार के लिये मृत्युदंड सुना दिया गया…! सुकरात के अपराध रहित जीवन को देखते हुए जीवनदान की एक शर्त भी रखी गई कि वे दरबार में सबके बीच घुटनों के बल बैठकर देवता से, दरबारियों से और आमजनता सहित सभी से सार्वजनिक रूप से माफी माँगें और कहें कि “मैं गलती पर था… पृथ्वी स्थिर है..!” यदि ऐसा नहीं करते तो सामने रखा विष का प्याला उठायें और विषपान करें…
सुकरात घुटनों के बल बैठे… विष का प्याला हाथों में थामा… फिर सबसे क्षमा माँगी… और कहा कि “मैं क्षमा चाहता हूँ… मैं गलत था पृथ्वी स्थिर है” (….थोड़ा रुके… फिर आगे बोले) “… किंतु फिर भी वह घूमती है..” और प्याला मुँह से लगाया विष ने होंठों को छुआ और सुकरात के प्राण पखेरू उड़ गये.. ! 


अगर सुकरात प्राणोत्सर्ग ना करते तो कुछ शताब्दियों की देरी जरूर होती ब्रम्हांड के रहस्य खुलने शुरु होने में… और आज की दुनियाँ आज से कुछ शताब्दियों तक पिछड़ी हुई तो जरूर होती! 


आज भी अनेक सत्य इसीलिये सुकरात के सतदर्शन से कटु हैं क्योंकि वे ‘स्थापित भ्रम या असत’ के विरुद्ध लक्षित शस्त्र से प्रतीत होते हैं..! 

…किन्तु स्थापित तो वध से पूर्व कंस और रावण भी थे… तो क्या सतदर्शक श्रीराम और श्रीकृष्ण  अनुचित हुए?

वे दिन गये जब परिवार के सत्कर्मों का सारा श्रेय केवल मुखिया का और सारे दोष ‘दुखिया’ को दिये जा सकते थे…
आज ऐसा संभव नहीं !

अब प्रोत्साहन और श्रेय पाये बिना तो परिजन तक आपके प्रति समर्पित नहीं रह पाते.. अब तो दोषयुक्त को भी दोषमुक्ति के प्रयास शुरु करते ही प्रोत्साहन चाहिए।

अब हर एक सिद्ध अपनी सिद्धि का श्रेय कैसे भी पाना चाहता है…!
‘सद्गुरु-सत्यार्चन के सतदर्शन’  (ऑडियो, वीडियो या लिखित संदेशों) से यदि किसी समूह विशेष की भावनायें आहत हों तो हम अग्रिम क्षमा चाहते हैं किन्तु हमारे आदर्श सुकरात हैं!

सतप्रेरित सतदर्शक ‘सत्यार्चन’ जनमंगल हेतु निस्वार्थ सतदर्शन के प्रदर्शन को संकल्पित हैं.!

किसी की भावनायें आहत करने या किसी के असम्मान के उद्देश्य से सद्गुरु सत्यार्चन कभी कुछ नहीं करते ना कहते…

वरन् केवल नैतिक का अलख जगाने हेतु ही वे सदैव से प्रयासरत हैं..!


इसी कड़ी में ‘सत्यार्चन’, अपने फेसबुक, वर्डप्रेस और यूट्यूब ब्लॉग पर ‘पुनरुत्खनित भारत’ विषय पर एक नव-आख्यान श्रंखला प्रारंभ करने जा रहे हैं… ताकि छद्म उत्खनित तथाकथित सत्य के समानांतर गहन उत्खनित वास्तविक सत पर भी ध्यानाकर्षण कराया जा सके..!

सभी सतदर्शन में रुचि रखने वालों से निवेदन है कि वे हमारे वीडियो ब्लॉग चेनल, वर्डप्रेस ब्लॉग और फेसबुक आदि सोशलमीडिया चेनल्स को सब्सक्राइब, फालो, लाइक, शेयर करें एवं करायें…!

धन्यवाद्!

अच्छा या बुरा जैसा लगा बतायें ... अच्छाई को प्रोत्साहन मिलेगा ... बुराई दूर की जा सकेगी...

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s