बिल्कुल सही बात कह रहे हैं हम और आप भी… कि अंग्रेजी केलेंडर बिना तो किसी का भी काम ही नहीं चलता…
वैसे भी देश विभिन्न प्रकार के नववर्ष मनाता ही है.. केवल सनातन के भीतर ही 2-4 तरह के नववर्ष पहले से प्रचलन में हैं…
1ला है गुड़ीपड़वा… जिसे हम हमारे बचपन से ही मनाते और मनते देखते आये हैं… हमारे क्षेत्र में चैत्रशुक्ल प्रतिपदा यानी प्रथमा यानी वर्ष की पहली तिथि को (एकम को) ‘गुड़ी पड़वां’ (गुड़ वाली प्रथमा) पर्व के नाम से जाना जाता है, इस दिन रसोई में एक विशेष मीठा व्यंजन गुड़ी या पूरणपोली (चने की दाल और गुड़ के हलवे को 2 पूड़ी के बीच रखकर दोनों पूड़ी को मिलाकर बेला जाता है, फिर इसे शुद्ध घी में तला जाता है, जिसे गुड़ी या पूरणपोली कहते हैं)

बनाया जाता है.. कारण विशेषवश पूरणपोली ना बन पाये तो गुड़ का हलवा, सीरा जैसा कु मीठा … अवश्य बनाया और खाया जाता है… जिसके पीछे शुभ की प्रतीक मिठास, संपन्नता और उत्सवमय उल्लास का पहला दिन बिताकर पूरे वर्ष को शुभारंभ की तरह ही सुखद बने रहने की कामना की कामना की जाना है…!
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2रा नववर्ष दीपोत्सव के समापन में नये आरंभ के रूप में मनाया जाता है जब बहीखाते और कलम दावात, मशीनरी आदि का नवीनीकरण और पूजन किया जाता है…
3रा है 1 अप्रेल, जिसके एक दिन पहले 31 मार्च को, राष्ट्रव्यापी योजनाओं की वार्षिक समीक्षा हेतु, पिछले सारे खातों को बंद कर दिया जाता है और 1 अप्रेल को नये सिरे से फिर से खोला जाता है … बीते वर्ष का समापन लेखाबंदी के नाम से किया जाता है और 1अप्रेल से नये बहीखाते का / नये सिरे से लेखन जमाखर्च प्रारंभ किया जाता है…! ध्यान देने योग्य है कि यह राष्ट्रीय पर्व है, जो विधि सम्मत है और यह भी अंग्रेजी केलेंडर पर ही आधारित है जो 1 अप्रेल को ही शुरु होकर 31 मार्च तक चलता है…!
4था वाला है 1 जनवरी… जब दुनियाँभर में सर्वाधिक मान्य केलेंडर का नया वर्ष प्रारंभ होता है…!
जब बाकी सभी तरह के नववर्ष मनाने में किसी को कोई आपत्ति नहीं है तो केवल 1 जनवरी पर ही आपत्ति क्यों? क्या इसीलिये इस नववर्ष से दुश्मनी है कि, यह ‘पड़ोसी’ का मुख्य त्योहार है? , कहाँ तक उचित है यह तर्क?
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यह अपेक्षा हम जरूर रखते हैं कि पड़ौसी हमारे दुखसुख में साथ हों मगर हम यह नहीं चाहते कि उसके दुखसुख में हमारे कोई अपने भी शामिल हों? हम शामिल होने वाले अपनों का विरोध करते हैं.. उनकी आलोचना, उन्हें प्रताड़ित और दंडित करना चाहते हैं तो ऐसा प्रयास सही कैसे हो सकता है?
इसमें कैसी समझदारी है?…
या फिर ऐसी नासमझी क्यों है?
प्रबुद्ध जन ही निश्चय करें!
राष्ट्रीय प्रशासक स्वयं ही देश के नागरिकों में, यदि ऐसे (या कैसे भी) आपसी वैमनस्य की मानसिकता का पोषण करें तो; ऐसे शासन के जनमंगलकारी होने पर, कोई भी विचारवान प्रबुद्ध कैसे और क्यों विश्वास करे..?
मुझ मूढ़मति को आप में कोई विचारवान प्रबुद्ध जन; आंतरिक वैमनस्य से सधने वाले राष्ट्रहितों को तार्किक आधार पर, सविस्तार समझायें! या ऐसी घिनौनी हरकतों से बाज आयें.. राष्ट्रीय सशक्तिकरण को आघात पहुँचाने वाली किसी भी योजना पर नागरिक क्यों अमल करें?
सोचिये और सोचकर बताईये!