अपने हिन्द में ही क्यों उपेक्षित है हिंदी?

द्वारा प्रकाशित किया गया

इस जटिल प्रश्न के सरल उतर ठीक से जानने कृपया इस यूट्यूब चैनल/ लिंक पर जाकर पूरा व्याख्यान सुनियेगा!

मित्रो;
आज हिंदी दिवस के इस शुभ दिन की आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं.. बधाइयां!
आज के समाचार पत्रों में हिंदी का खूब सम्मान किया जाएगा बखान किया जाएगा…!
सरकारी और गैर सरकारी कार्यालयों में आज हिंदी बोलने, लिखने, सुनने का संदेश दिया जाएगा और…
कल से फिर अपनी डफली अपना राग शुरू हो जाएगा!
आखिर ऐसा क्यों है कि हम हमारी भाषा को वह प्रतिष्ठा नहीं दिलवा पा रहे हैं जो उसे मिलनी चाहिए?  हमारी हिंदी जिस योग्य है वह मान सम्मान उसे क्यों नहीं मिल पा रहा..? मनीषियों ने कहा है कि यदि समस्या है तो उसके पीछे कोई ना कोई कारण भी अवश्य होगा… बड़ी समस्याओं के पीछे बड़े और बहुत सारे कारण छुपे हुए होते हैं जिन्हें ढूंढना मुश्किल हो जाता है… और शायद इसलिए कि हम निष्पक्ष होकर ठीक से देख ही नहीं पाते…!
डब्ल्यूटीए का एक सर्वे आज के अखबारों में प्रकाशित हुआ है जिसके अनुसार वेबसाइट्स पर विभिन्न भाषाओं मैं प्रसारित कलेवरों का प्रतिशत दर्शाया गया है.  शीर्ष पर 61.3 प्रतिशत के साथ अंग्रेजी ही है किन्तु 2रे स्थान पर केवल 5.5% कलेवर के साथ रूसी भाषा है और हिंदी 0.1% के साथ दसवें स्थान पर..!
अब इस स्थिति पर हम गौरव करें या शर्मसार हों कह पाना कठिन है..!
किंतु इस सर्वे के परिणामों में गौरव और शर्म दोनों ही हैं….
गौरव इस बात का कि हमरी हिन्दी भाषा विश्व की शीर्ष 10 भाषाओं में से एक हो गई है!
  और शर्म इसलिए कि विश्व की एक तिहाई आबादी वाले भारत में आधे से अधिक हिंदी भाषियों के होते हुए भी हम शीर्षस्थ अंग्रेजी की अपेक्षा 613 गुना पीछे हैं और अपेक्षाकृत बहुत छोटी आबादी वाले रूस की रूसी भाषा की तुलना में भी हमारा हिंदी लेखन 11 गुणा कम है..
इसके पीछे कारण क्या हैं…
सबसे पहला कारण तो हमारी लंबी गुलामी से हमारे पूर्वजों का अभ्यस्त हो जाना और हम लोगों द्वारा भी गुलामी की चादर को गौरव पूर्ण तरीके से लपेटे रखना है!
मुगल कालीन  गुलामी में; उर्दू अरबी फारसी का प्रचलन था तब अरबी और फारसी जानने वालों को समाज में वैसे ही सम्मानित तरीके से देखा जाता था जैसे अंग्रेजों के शासनकाल से शुरू होकर आज तक अंग्रेजी जानने वालों को देखा जाता है!
इस भाषाई जानकारी के आधार पर सामाजिक प्रतिष्ठा के पीछे भी सीधा सा कारण है कि जो शासक जिस भाषा का ज्ञाता रहा वह अपनी भाषा के जानकारों को अपने दरबार और सरकारी कामकाज में सम्मिलित करना चाहता था मुगल काल में उर्दू अरबी और फारसी इसके बाद अंग्रेजों के काल में लगभग 200 वर्ष तक अंग्रेजी जानने वाले भारती अंग्रेजों को इंग्लैंड से आए अंग्रेजों के बाद सम्मान मिलने लगा उन्हें सरकारी दफ्तरों में काम मिलने लगा इसीलिए हर कोई अंग्रेजी के पीछे भागने लगा..  और अंग्रेजों के साथ काम करते करते भारतीय अंग्रेजी का ज्ञाता अंग्रेजों की ही तरह जीवन यापन भी करने लगा घर में भी अंग्रेजी बोलने लगा समाज में भी अंग्रेजी का रौब झाड़ने लगा…  *सबसे बुरी बात यह कि अंग्रेजों की हाँ में हाँ मिलाता   भारतीय अंग्रेज़ हिन्दी और हिन्दी भाषियों को हेय समझने लगा…और  यही सब अब तक भी चला आ रहा है।*
दुखद यह है कि भारत में ऐसी स्थिति केवल हिंदी भाषियों के साथ है… अन्य भाषाओं के साथ नहीं अन्य क्षेत्रीय भाषाएं उतनी विपन्न नहीं हुई जितनी की हिंदी हो गई…! मराठी भाषी अपने घर में अपने बच्चों को मराठी का ज्ञान अवश्य कराता है,  ओड़िया भाषी उड़िया का, बांग्ला भाषा बांग्ला का, सिंधी भाषी सिंधी का, असमी भाषा असमी का आदि आदि… जबकि; हिंदी भाषी हिंदी की अपेक्षा अपने बच्चों को अंग्रेजी बोलता देखकर प्रसन्न होता है…!
गुलामी की इस मानसिकता से बाहर निकलना बहुत जरूरी है! विशेषकर आज, जब गुलामी के सभी चिन्हों को मिटाने की बात हो रही है तब, हमें हमारी हिंदी को उचित सम्मान देकर परतंत्र की प्रतीक अंग्रेजी से छुटकारा पाने की ओर कदम बढ़ाने की आवश्यकता है!
इसके अतिरिक्त अंग्रेजी के अंतर्राष्ट्रीय भाषा होने का यह भी बड़ा कारण है अंग्रेजों का शासन लगभग आधी दुनिया पर रहा जहां उन्होंने अपनी भाषा का भरपूर प्रचार-प्रसार किया और हम भारतीयों की ही तरह अन्य परतंत्र राष्ट्रों के नागरिक भी, अब स्वतंत्र होकर भी, परतंत्रता की मानसिकता से बाहर नहीं आ पा रहे हैं!  जो देश पर परतंत्रता की मानसिकता से जल्दी बाहर निकल गए वे आज विकसित देश कहलाते हैं… !
विकसित देशों में अमेरिका और इंग्लैंड के अलावा अन्य कहीं अंग्रेजी का प्रचलन नहीं है… ! जैसे – जर्मनी जापान रूस चीन जैसे देशों में अंग्रेजी लोकप्रिय नहीं है किंतु हमारे यहां है!
अंग्रेजी के वैश्विक भाषा होने का एक और बड़ा कारण अंग्रेजी की कुछ विशेषताएं हैं…  जिससे अंग्रेजी सुविधाजनक है या बना दी गई है!
अंग्रेजी की उन्हीं विशेषताओं को बहुत अच्छी तरह हिंदी में भी समाविष्ट किया जा सकता है….
जैसे अंग्रेजी में प्रतिवर्ष नये-नये शब्दों को समाहित करती ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी का होना…!
आक्सफोर्ड डिक्शनरी में अभी हाल ही में 24 भारतीय शब्दों को शामिल किया गया है …


https://hindi.news18.com/news/lifestyle/aadhaar-dabba-shaadi-26-new-indian-english-word-added-in-oxford-dictionary-ash-2801566.html


ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी इंग्लिश गवर्नमेंट से संबंधित नहीं है बल्कि ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी सिटी से संबंधित है…!
विगत वर्ष सम्मिलित 24 भारतीय शब्दों में एक शब्द डीम्ड यूनिवर्सिटी भी है और यह डीम्ड दूर स्थित सीखने का श्रोत बड़े आराम से “दूरस्थ विश्वविद्यालय” और संक्षेप में “दूवि” या “दूविवि”  भी तो हो सकता था…
और शायद होता भी… यदि हमारे देश में अंग्रेजी की तरह हिंदी के प्रचलन को उचित ठहराया जा सकता…


जो बीत गया सो बीत गया…
अब देखें आगे क्या करें नया…!

         हर विशेष उपलब्धि की अपेक्षा दूसरों से ही रखने के स्थान पर क्यों ना हम स्वयं ही अपना पहला कदम रखें? शुरुआत करें? शुभारंभ करें?
तो आइए !
आज भारतीय राष्ट्रीय हिंदी शब्द कोष की स्थापना की घोषणा की जाये!
हम सब मिलकर इस कोष का संकलन करें, निर्माण और निरंतर प्रबंधन भी करें! विकीपीडिया की ही तरह या फिर विकीपीडिया पर ही !   प्रकाशित कर इसे सर्व सुलभ करें!
एक और बड़े प्रयास की आवश्यकता है जिसे भी आज से ही अपनाया जाना उचित होगा… और वह है हिंदी संक्षिप्तीकरण की नींव का रखा जाना..
जैसे यदि हम सब उचित समझें तो हमारे समूह राष्ट्रीय सखी साहित्य का नाम “राससा” भी तो हो सकता है..?

या अन्य किसी भी संस्थान का नाम भी इसी तरह हिंदी संक्षेपीकृत भी किया जा सकता है..!
हम हमारी भारतीय “राष्ट्रीय हिंदी शब्दकोश” का नाम तक संक्षेपाक्षर में “राहिंशको” या “हिंशको” भी प्रचारित कर सकते हैं..!
हिन्दी संक्षेपीकरण का प्रचलन, निश्चय ही, हिन्दी को लोकप्रिय बनाने वाले शस्त्रास्त्र की तरह सिद्ध होगा!
तो आइए!
हम हिंदी के शब्दों के अपने ज्ञानकोष  में से कुछ अल्पप्रचलित (कठिन) शब्द और उनके समानार्थियों  को “राहिंशको” को  दान करें! साथ ही यदि कुछ शब्दों के अर्थ जानने हों तो नि:संकोच हम “राहिंशको” से ले लें!
धन्यवाद्!

अच्छा या बुरा जैसा लगा बतायें ... अच्छाई को प्रोत्साहन मिलेगा ... बुराई दूर की जा सकेगी...

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s