
साँझ घिरते ही उतर आई हो…
जो ओस की बूँद..
सुबह होने पर अगर वो
तिरोहित होने से
मना कर दे तो?
तो कभी कभी ‘वो’ सुन भी लेता है..
और बदलियों से आसमां ढंक देता है..
तब सुबह होकर भी नहीं हो पाती..
बदलियों में ओस नहीं जमती ये तो सच है मगर
तिरोहित भी तो नहीं हो पाती..!
कितनी अनूठी है ना
यह प्रकृति?
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