मेरा हृदय, घर है तुम्हारा
मेरे हृदय का एक कक्ष …
आरक्षित रहा जो तुम्हारे नाम…
ना भर सका तुम्हारे सानिध्य से ….
ना ही रिक्त तुम्हारी यादों से….,
तुम हो अब ‘स्थित वहाँ ‘
यहाँ मगर मेरे दिल में भी हो
और रहोगी भी सदा ….
तुम्हारी अमिट यादों में….!!!
10 thoughts on “मेरा हृदय, घर है तुम्हारा”
Waah…laajwaab????????????
धन्यवाद्..
धन्यवाद मित्र … प्रेम एक विशिष्ट अनुभूति है…. हर कोई इससे गुजरता है… अपना-अपना तरीका भी …
bilkul sahi….
वाह सर मज़ा आ गया बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ????????????????
धन्यवाद् …. आप पारखी हैं …
Khubsurat ????????
बहुत बहुत धन्यवाद् जी आपका!
(वर्डप्रेस/ जेटपेक ने डांटकर बताया कि मेरी ओर से उत्तर देना शेष था…!!!)
Nice
आपने समझा और सराहा यही बहुत है… बहुत बहुत धन्यवाद् जी आपका!
आप बहुत नियमित हैं और हम लापरवाह…
(वर्डप्रेस/ जेटपेक ने डांटकर बताया कि मेरी ओर से उत्तर देना शेष था तब भूल सुधार में लगे हैं!)