आम भारतीय का अपना प्रसारण – सोशल मीडिया!
आज का अधिकतर डिजिटल व थोड़ा बहुत प्रिंट मीडिया बिकाऊ हैं किन्तु सोशल मीडिया स्वतंत्र है!
कई बार तो प्रिंट व डिजिटल मीडिया को सोशल मीडिया ही लीड या बीट करते भी देखा जाता है!
बिकाऊ डिजिटल व प्रिंट मीडिया भी सोशल मीडिया की बढ़ती ताकत को बहुत अच्छी तरह से पहचान चुका है इसीलिए कोई भी चैनल सोशल मीडिया की आलोचना का कोई अवसर नहीं छोड़ता !
राजनीतिक दलों में से सबसे पहले भा ज पा ने सोशल मीडिया की ताकत को पहचाना, अपनाया, भुनाया, और आज काफी हद तक सोशल मीडिया भी खरीदा जा चुका है ! यह खरीदी पी आर एजेंसी द्वारा अपने समर्थन में कम और दूसरों का मखौल उड़ाने उन को बदनाम करने के केम्पेन के रूप में आज भी जारी है!
इस कथन के समर्थन में एक तर्क दे रहा हूँ –
2013 तक देश के सभी बड़े दलों के सभी नेता बड़े बड़े और महत्वपूर्ण बयान देते रहे हैं किन्तु 2014 से 2017 के मई तक हर विपक्षी दल के हर एक नेता का हर एक वक्तव्य केवल मखौल के रूप में ही समूचे मीडिया पर आया !
क्या एक साथ सभी महत्वपूर्ण विपक्षी दलों के सभी नेताओं की बुद्धि भ्रष्ट हुई होगी
या ऐसा परोसा गया!
(मैंने जिम्मेदारों को “अति औषध विष” के तथ्य के स्मरण कराने सहित अप्रेल 2017 में ध्यानाकर्षण कराया तब मई-जून 2017 से स्थिति थोड़ी बहुत बदली है!)
आज सभी सक्षम राजनीतिक दल डिजिटल व सोशल मीडिया पर क्षमतानुरूप सक्रिय हो चुके हैं! किन्तु तब तक भारत भी थोड़ा बहुत जाग चुका है!
थोड़ा बहुत सच-झूठ का फर्क समझने लगा है भारत! सचाई को समर्थन मिलना शुरू हुआ है!
अब आगे सोशल मीडिया विश्वसनीय होकर कई गुना सशक्त होकर उभरने जा रहा है ! इसी में से एक मेरे ब्लाग “लेखन हिन्दुस्तानी” स्वसासन (http://SwaSaaSan.jagranjunction.com and https://swasaasan.blogspot.in
पर कई ऐसे मुद्दे मिल जायेंगे जो उठाये जाने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर परिवर्तन के कारण बने किन्तु विचार को जन्म देने वाले को कोई श्रेय इसीलिए नहीं मिला क्योंकि वह किसी का अंधभक्त या अंधविरोधी नहीं केवल समदर्शी है !
केवल एक विचार “सब्सिडी छोड़ो अभियान के प्रणेता” के रूप में लेखक का उल्लेख माननीय प्रधानमंत्री जी ने कनेडा में एक भाषण देते हुए एक रास्ता चलते आम आदमी के प्रयास से (तब तक) 500 करोड़ रुपये की बचत के रूप में किया था!
बेनाम के काम ही आम होते रहें बहुत है•••
एक दिन नाम भी हो ही जायेगा !