वो भी…
मसीहा सी उम्मीद, उससे, किसलिये ऐ दोस्त
थोड़ा बहुत जीने का हक, रखता तो है वो भी….
आशिकी कब-कहाँ, शुमार हुई गुनाहों में
इक इश्क वाला दिल शायद, रखे बैठा हो वो भी…
कैसे कोई कहेगा कहीं कमीनगी कासिद की
कासिदी में कोई गुनाह, कभी कर बैठा हो वो भी…
क्या हुआ अगरचे कुछ गुनाह कर ही डाले
इसी गुनाहों भरी दुनियाँ का, वासिन्दा है वो भी…
कब तक सिमट के रहता कोकून के अंदर ….
रेशम कीड़ा तो नहीं आखिर, इंसान है वो भी…