ये सभी इजरायली हमले में मारे गये छोटे छोटे
“…..”
के फोटो हैं…
देख.. पढ़… जानकर मैं
“……”
हुआ!
दोनों खाली स्धानों में आप अपनी मानसिकता के अनुसार शब्द चयन कर भर लीजिए… जैसे पहले में- बच्चे, नौनिहाल, भविष्य, कर्णधार, दुश्मन, सँपोले, विष बीज, अंकरित शत्रु या अन्य तथा दूसरे में विषाद, दुख, शोक, हर्ष, उत्सव, आनंद, आनंदातिरेक से मदमस्त.. या अन्य भाव जो आ रहे हों कमेंट में लिख कर भेज दीजिएगा… किन्तु….
बस इतना ध्यान रखिए क्योंकि आपके भाव होंगे वैसे ही भाव उन बच्चों के शुभचिंतकों के आपके बच्चों के प्रति होंगे…. और सिर्फ उन लोगों के ही नहीं नियति से भी इन्हीं आधारों पर आपका प्रारब्ध निर्धारित होगा क्योंकि नियति इसी तरह निर्धारण करती है… और अब तक भी करते आई है..
क्योंकि किसी के प्रति द्वेष रखकर उससे नेहसिक्त भावों की आशा कैसे रख सकते हैं आप…?
द्वेष और शत्रुता का स्वरूप ऐसा ही है…
इसीलिए परंपरागत शत्रु जितनी गहराई से आपसी शत्रुता निभाते जाते हैं उतने ही रसातल में जाते चले जाते हैं… और शत्रुता का अंत 2 में से 1 प्रकार से ही संभव हो पाता है..
1ला है उभय पक्षों में से किसी एक या सभी शत्रु पक्षों का समाप्त या समाप्तप्राय अशक्त हो जाना…
और 2रे
शत्रुता की समाप्ति तभी संभव है जब उभय पक्षों में से कोई ना कोई एक
शत्रुता से ही शत्रुता रखकर शत्रुता को अपनी ओर से तुरंत समाप्त कर समभाव रखना प्रारंभ कर दे…!
जैसा द्वतीय विश्वयुद्ध में नेस्तनाबूद होने के बाद जापान ने किया… !
और जिस तरह मेरे प्रथम गुरुजी और मैं अपने जीवन में स्वयंं भी करते आये हैं…!
इसीलिये सच यह है कि…
दुश्मनी से दोस्ती जिन दोस्तों ने की … दुश्मनी से दोस्ती रख दूर तक ना जा सके…
दुश्मनी से दुश्मनी जिन दुश्मनों ने की… मेरे दुश्मन भी मार दुश्मनी को शामिल हैं दोस्तों में अब !
अब तक का इतिहास गवाह है कि समूचे विश्व में शत्रुता को सबसे अधिक कट्टरता से निभाने वाले ही सबसे पहले समाप्त हुए! और होते जा रहे हैं…