सावधान! दुस्साहसी पत्रकार..!
हिम्मत होना अच्छी बात है फिर वह हम में हो कि आपमें…
मगर हम लेखकों को, पत्रकारों को और रिपोर्टरों को अपनी लेखनी की निरंतरता बनाये रखने को दृष्टिगत रख तात्कालिक वातावरण की सीमाओं के अन्दर ही लिखना चाहिये…
यथार्थ यह है कि अब राष्ट्रप्रेम का पैमाना ‘नफरत’ का प्रचार प्रसार और समर्थन बन चुका है …
इसीलिए हे लिपिसिद्ध…
अब आप
‘अमन’ और ‘प्रेम’ की
बात करके
‘राष्ट्रद्रोह’ के अघोषित अप्रत्यक्ष दोषी मत बन जाइये…!
अगर आपकी कलम ईमान वाली मादक सुरा के मद में, कुछेक ‘अनाप-सनाप सच’ लिख ही दे… तो खुमार उतरते ही उसे डिलीट कर दीजिये… और अगर फिर भी… सच लिखना ही हो तो..
काटने… मारने … बाँटने वाला सच लिखिये ….
पर मेरे अच्छे कलमवर दोस्तो .. आपको
अपनी सलामती का भी ख्याल रखते हुए
‘अमन’ पर.. दोस्ती पर… प्रेम पर… और समानता पर तो कुछ भी नहीं लिखना चाहिये…!
जब भी आप लिखियेगा… खूनखराबा और नफरत से सना ही लिखिए… ताकि जीवित बने रहें आप… जिससे आपकी लेखनी अनवरत सक्रिय तो रह सके …
इस दौर में रचनाकार यदि ज्वलंत नफरतों को नितांत ओछेपन के तड़के के साथ प्रबुद्ध पाठकों को ललकारते या धिक्कारते हुए सृजन करे तो उसका सर्वोच्च प्रशंसा से आलोकित होना तो सुनिश्चित है ही… पुरुस्कृत होना भी शतप्रतिशत संभाव्य है..!
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आप सभी लेखकीय प्रतिभासंपन्न साथीजन, सदैव स्वस्थ संपन्न सुखी रहें…!
…और…
दीर्घजीवी भी…!
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ऐसी हमारी शुभकामनाएं!