वर्तमान में, प्रत्येक व्यक्ति, #अपने_अभिमत को #स्वस्थ, #सबल और #सम्पूर्ण #सिद्ध_करने_तुला_हुआ है! साथ ही अन्य सभी की #विचारधाराओं को #अस्वस्थ, #अपूर्ण, #निरर्थक #मनवाने_की_जिद भी लिये बैठा है!
जबकि.. “#हर_एक_व्यक्ति को #अपने_अध्ययन के दोहन से प्राप्त दुग्ध समान द्रव्य से भरे प्याले में, अन्य के अध्ययन से उपार्जित, मधु सम द्रव्य के, समामेलन योग्य, रिक्ति अवश्य रखना चाहिए! तभी तो ज्ञानामृत का प्रादुर्भाव संभव हो सकेगा!”
अन्यथा अंधों के गाँव में हर अंधे का अपना; अलग हाथी तो होता ही है!