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दुविधा

दुविधा
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अचानक आई सूचना पर जाना तो जरूरी था ही सो जनरल में जाना बैठे‌। हम, हमारे चश्मोचिराग और हमारी शरीके हयात .. सब फैलकर बैठ चुके थे … मगर ट्रेन के चलते चलते हम सभी सिकुड़ने मजबूर हो गए  भीड़ बढ़ चुकी थी… थोड़ी देर बाद खाने का टाइम हो गया तो मैडम ने टिफिन निकाला.. वो एक  सुघड़ गृहणी जो थी.. मेरी कागज की प्लेट में पूड़ी, सूखी सब्जी, अचार और गुड़ सब कुछ तो था.. मैंने पहला निवाला तोड़ा ही था कि एक 10-12 साल की फटेहाल लड़की का हाथ पकड़े कब्र में पैर लटकाये कंकाल सी मैले कुचैले कपड़ों में लिपटी  बुढ़िया ने अपना झुर्रियों वाला हाथ मेरी तरफ फैलाया.. और मेरी तरफ कातर नजरों से देखा ..
मैं पशोपेश में पड़ गया ! उसके सामने खड़े रहते तो मैं खा ही नहीं सकता था… मुझसे कभी नहीं हो पाया कि मैं भूखे को या भोजन को ललचाती नजर को अनदेखा कर खा सकूँ… मगर मेरी प्लेट उसे दे भी तो नहीं सकता था.. मेरी सुघड़  धर्मपत्नी का कोप झेलने का साहस मैं कैसे करता ? फिर भी बहुत साहस जुटाकर मैंने एक एक पूड़ी बुढ़िया और उसके साथ वाली बच्ची को दी और वहाँ से दूर होने को कहा ..  लेकिन वो ढीठ.. आधा कदम पीछे हटकर वहीं खड़ी रही और उसी कातर नजर से देखते रहीं.. मैं हाथ में प्लेट लिए बैठा रहा..  ना खाया गया ना दे ही सका ..!
समझ ही नहीं आया कि मैं क्या करता.. आप ही बताइयेगा?
दुविधा
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अचानक आई सूचना पर जाना तो जरूरी था ही सो जनरल में जाना बैठे‌। हम, हमारे चश्मोचिराग और हमारी शरीके हयात .. सब फैलकर बैठ चुके थे … मगर ट्रेन के चलते चलते हम सभी सिकुड़ने मजबूर हो गए  भीड़ बढ़ चुकी थी… थोड़ी देर बाद खाने का टाइम हो गया तो मैडम ने टिफिन निकाला.. वो एक  सुघड़ गृहणी जो थी.. मेरी कागज की प्लेट में पूड़ी, सूखी सब्जी, अचार और गुड़ सब कुछ तो था.. मैंने पहला निवाला तोड़ा ही था कि एक 10-12 साल की फटेहाल लड़की का हाथ पकड़े कब्र में पैर लटकाये कंकाल सी मैले कुचैले कपड़ों में लिपटी  बुढ़िया ने अपना झुर्रियों वाला हाथ मेरी तरफ फैलाया.. और मेरी तरफ कातर नजरों से देखा ..
मैं पशोपेश में पड़ गया ! उसके सामने खड़े रहते तो मैं खा ही नहीं सकता था… मुझसे कभी नहीं हो पाया कि मैं भूखे को या भोजन को ललचाती नजर को अनदेखा कर खा सकूँ… मगर मेरी प्लेट उसे दे भी तो नहीं सकता था.. मेरी सुघड़  धर्मपत्नी का कोप झेलने का साहस मैं कैसे करता ? फिर भी बहुत साहस जुटाकर मैंने एक एक पूड़ी बुढ़िया और उसके साथ वाली बच्ची को दी और वहाँ से दूर होने को कहा ..  लेकिन वो ढीठ.. आधा कदम पीछे हटकर वहीं खड़ी रही और उसी कातर नजर से देखते रहीं.. मैं हाथ में प्लेट लिए बैठा रहा..  ना खाया गया ना दे ही सका ..!
समझ ही नहीं आया कि मैं क्या करता..

आप ही बताइयेगा?

traffictail
Author: traffictail

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