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राम-राज ही तो है…?

“दैहिक दैविक भौतिक तापा राम-राज काहू नहीं व्यापा!”

 

जन-जन को घर बनाने सब्सिडी मिल रही है… (केवल प्लाट भर खरीद लो!) , पेट भरने घर बैठे राशन मिल रहा है (केवल सब्जी, ईंधन, कपड़े, बिजली पर ही तो खर्च करना है)! अब यह “केवल” वाला करने के लिए पकोड़े, चाय की दुकान/ गुमटी/ रेहड़ी  खोलना हो तो “मुद्रा” ले लो… (बस इतना ध्यान रहे कि कोई जलखोर आपका नाम किसी अपराध के संदेहियों में ना लिखवा दे… नहीं तो बुलडोजर यह सब कुछ अवैध घोषित कर ध्वस्त कर देगा !)

अब ऐसे राम-राज समान युग में भी,  जो नागरिक सुखानुभूति से भरकर जयकारे ना लगाये उस कृतघ्न को क्या कहें…?

Sat Darshan
Author: Sat Darshan

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