मनीषी जानते हैं कि सांप दूध नहीं पीते…
किंतु कहते नहीं!
यदि कहें तो?
… तो हो सकता है कि,
अच्छे खासे धर्माचारी को भी धर्माडम्बरवाद के प्रचारकों का सिंडीकेट, धर्मविरोधी सिद्ध कर,
धर्मांधों के हाथों, मरवा ही दे!
.
असल में कभी ऐसे भोले संसार का दौर भी था
जब संंपेरों ने,
नागों के दूध पीने का कूटदर्शन इस तरह कराया
कि नागों को दूध पिलाने का भ्रम, प्रचलित हो गया,
इतना प्रचलित कि हर कोई,
आज तक,
साँपों के दूध पीने के,
असत दर्शन को ही,
सच माने बैठा है..!
जबकि;
मनीषी जानते हैं कि सांप दूध नहीं पीते…
किंतु;
यदि आज के जागरूक जग में, नवोदित चालबाज धार्मिक व्यवसायी, शेरों /सिंहों को कंद-मूल फल परोसने का प्रचार प्रसार करें..
कितना भी क्यों ना करें..
ऐसे नवअसत को वे स्थापित नहीं कर पायेंगे!
उन्हें कोई सफलता नहीं मिलने वाली!
ऐसे दुरुह प्रयास व्यर्थ ही रह जाने हैं.
.
क्योंकि
.
हम सतयुग के द्वार खड़े हैं..!
.
भ्रमकारी कितने भी सबल या सम्पन्न क्यों ना हों
वे शेरों को कंद-मूल फल खाने का अभिनय करते कतई नहीं ही दिखा पायेंगे!
.
अर्थात?
जग जागृत है अब
और
नियति न्यायी.. तथा निर्णायक!
.
यथार्थ; सहज संतुलित स्वरूप में स्वमेव प्रत्यक्ष होंगे..!
.
सब देखेंगे!
.
तदनंतर
सब सत्य ही स्वीकारेंगे!
सत्य ही परोसेंगे !!
और
आने वाले कल में सत्य की सम्पूर्ण सत्ता स्वमेव सर्वत्र स्थापित होगी!
– सत्यार्चन सुबुद्ध