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काश्मीर आरंभ से अब तक..

– काश्मीर!
(आरंभ से अब तक ..)

भारत की आज़ादी से पहले और अब तक कश्मीर में कई महत्वपूर्ण घटनाएं हुई हैं, जिनसे वहाँ के सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिदृश्य में बड़े बदलाव आए हैं। इन घटनाओं का विवरण निम्नलिखित है:

1. 1930 का दशक: कश्मीर में राजनीतिक आंदोलन की शुरुआत

शेख अब्दुल्ला और मुस्लिम कॉन्फ्रेंस का गठन (1932): इस समय महाराजा हरि सिंह के शासन के खिलाफ एक राजनीतिक आंदोलन की शुरुआत हुई। शेख अब्दुल्ला ने “मुस्लिम कॉन्फ्रेंस” की स्थापना की, जो बाद में 1939 में “नेशनल कॉन्फ्रेंस” बन गई, जो सभी धर्मों के लिए एक अधिक समावेशी पार्टी थी।

महाराजा के खिलाफ आंदोलन: इस आंदोलन का उद्देश्य महाराजा की तानाशाही शासन प्रणाली का विरोध और कश्मीर के मुस्लिम बहुल क्षेत्र के लिए अधिक अधिकारों की मांग करना था।

2. 1947: भारत का विभाजन और कश्मीर का विवाद

भारत की स्वतंत्रता और पाकिस्तान का निर्माण: ब्रिटिश भारत के विभाजन के दौरान, कश्मीर का भविष्य अनिश्चित था। कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने स्वतंत्र रहने का निर्णय किया था, लेकिन पाकिस्तान समर्थित कबाइलियों के आक्रमण के कारण उन्हें मदद के लिए भारत से संपर्क करना पड़ा।

भारत में विलय और पहला युद्ध (1947-48): महाराजा ने भारत के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए, जिसके बाद भारतीय सेना कश्मीर में दाखिल हुई। इस समय पहला भारत-पाक युद्ध हुआ और कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा (जिसे आज “पाक अधिकृत कश्मीर” कहा जाता है) पाकिस्तान के कब्जे में चला गया।

3. 1950 का दशक: कश्मीर का विशेष दर्जा

धारा 370 और 35A का प्रावधान: 1950 के दशक में भारतीय संविधान के तहत जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा दिया गया। धारा 370 के तहत कश्मीर को विशेष स्वायत्तता मिली और धारा 35A ने राज्य को अपनी नागरिकता पर कानून बनाने का अधिकार दिया। इससे वहाँ की स्थानीय पहचान को संरक्षित किया गया।

4. 1987: राज्य चुनाव और उग्रवाद का उदय

1987 का चुनाव और राजनैतिक असंतोष: 1987 के राज्य चुनावों में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के गठबंधन ने जीत हासिल की, लेकिन व्यापक रूप से चुनाव में धांधली का आरोप लगाया गया। इसके परिणामस्वरूप, कई युवा निराश हो गए और कुछ ने हथियार उठा लिए। यह कश्मीर में उग्रवाद की शुरुआत मानी जाती है।

हिज़्ब-उल-मुजाहिदीन का उदय: 1989 में इस्लामी समूहों का उभरना शुरू हुआ, जिसने स्थानीय युवाओं को पाकिस्तान की सहायता से प्रशिक्षित किया और भारतीय राज्य के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष छेड़ दिया।

5. 1990 का दशक: आतंकवाद और पलायन

कश्मीरी पंडितों का पलायन (1990): 1990 के दशक में कश्मीर घाटी में बड़े पैमाने पर आतंकवाद और हिंसा फैल गई, जिसके कारण कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ। हज़ारों कश्मीरी पंडितों को अपना घर छोड़कर शरणार्थी बनकर भारत के अन्य हिस्सों में बसना पड़ा।

AFSPA (आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट): इस कानून के तहत भारतीय सेना को कश्मीर में व्यापक अधिकार मिले, लेकिन इससे मानवाधिकारों का उल्लंघन भी हुआ, जो विवाद का एक बड़ा मुद्दा बन गया।

6. 1999: कारगिल युद्ध

कारगिल युद्ध पाकिस्तान द्वारा 1999 में भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ के बाद हुआ। भारतीय सेना ने इस युद्ध में जीत हासिल की और कारगिल क्षेत्र से घुसपैठियों को निकाल दिया। इस युद्ध ने दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा दिया।

7. 2000-2010: शांति प्रक्रिया और अस्थिरता

इस दौरान शांति वार्ता के कई प्रयास हुए, लेकिन उग्रवाद, मानवाधिकारों के हनन, और राजनैतिक अस्थिरता के कारण स्थायी शांति स्थापित नहीं हो सकी।

2008, 2010, और 2016 में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन और हिंसा की घटनाएं हुईं, जो पत्थरबाजी की घटनाओं के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनीं।

8. 2019: धारा 370 का निरसन

5 अगस्त 2019: भारत सरकार ने संविधान की धारा 370 को निरस्त कर दिया, जिससे जम्मू और कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त हो गया। इसे दो केंद्रशासित प्रदेशों, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख, में विभाजित कर दिया गया। इसके बाद घाटी में कर्फ्यू और संचार सेवाओं पर प्रतिबंध लगा दिए गए।

राजनीतिक प्रतिक्रियाएं: इस निर्णय पर पाकिस्तान और कश्मीर के कई नेताओं ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस कदम की आलोचना और समर्थन दोनों हुए।

9. 2020 और उसके बाद: नई नीतियां और विकास

डोमिसाइल कानून: 2020 में नया डोमिसाइल कानून लागू किया गया, जिसके तहत भारत के अन्य हिस्सों से आए लोग भी कश्मीर में नागरिकता का दावा कर सकते हैं।

राजनैतिक प्रक्रियाएं: 2021-22 में स्थानीय पंचायत और जिला विकास परिषद के चुनाव हुए, जिससे धीरे-धीरे लोकतांत्रिक प्रक्रिया बहाल करने का प्रयास किया गया।

10- अक्टूबर में 2024 में लोकतांत्रिक प्रक्रिया की वापसी

.हाल ही में जम्मू और कश्मीर में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में नेशनल कांफ्रेंस (NC) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिला। नेशनल कांफ्रेंस ने सबसे अधिक सीटें जीतीं और पार्टी के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने गंदरबल और बडगाम सीट से भारी बहुमत के साथ जीत दर्ज की। पार्टी ने 49 सीटें जीतकर बहुमत हासिल किया, जिससे उमर अब्दुल्ला राज्य के अगले मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं।

भाजपा ने 29 सीटों पर जीत दर्ज की और जम्मू क्षेत्र में मजबूत पकड़ बनाए रखी। पार्टी नेता किशन रेड्डी ने इसे “कांग्रेस मुक्त जम्मू” कहा, क्योंकि कांग्रेस पार्टी जम्मू क्षेत्र में कोई भी सीट नहीं जीत पाई।

आम आदमी पार्टी (AAP) ने इस बार पहली बार दखल देते हुए डोडा सीट से जीत दर्ज की, जिससे पार्टी के समर्थकों में उत्साह देखा गया। वहीं, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) और कांग्रेस को इस चुनाव में अपेक्षाकृत कम समर्थन मिला। पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने नेशनल कांफ्रेंस को जीत की बधाई दी और कहा कि उनकी पार्टी रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभाएगी।

इन चुनावों में अन्य महत्वपूर्ण विजेताओं में सज्जाद लोन (पीपुल्स कांफ्रेंस), गुलाम अहमद मीर (INC), और पीरजादा मोहम्मद सईद (INC) जैसे नाम शामिल हैं, जबकि निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी कुछ महत्वपूर्ण सीटें जीतीं।

यह चुनाव जम्मू और कश्मीर की बदलती राजनीतिक स्थिति को दर्शाता है, जहां एक तरफ पारंपरिक पार्टियों का प्रभाव बना हुआ है, वहीं नए दलों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।

कश्मीर की स्थिति ऐतिहासिक, राजनैतिक, और सामाजिक दृष्टिकोण से बहुत जटिल रही है और यहाँ के घटनाक्रम ने न केवल भारत और पाकिस्तान के संबंधों को बल्कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति को भी प्रभावित किया है।
(एआई से प्राप्त जानकारी आधारित!)

Sathyarchan VK Khare
Author: Sathyarchan VK Khare

यथार्थ ही अभीष्ट हो स्वीकार विरुद्ध हो भले..!

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